नई दिल्ली । भारत ने पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के साथ ‘सिंधु जल संधि’ को स्थगित कर दिया है। इस संबंध में शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल के बीच करीब 45 मिनट की बैठक में चर्चा हुई।
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पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ निरंतर कदम उठा रहे भारत ने शुक्रवार को सिंधु जल संधि को रोकने के निर्णय को पूरी दृढता से लागू करने की योजना को अंतिम रूप देते हुए कहा कि सिंधु नदी का एक बूंद पानी भी पाकिस्तान नहीं जाने दिया जायेगा।
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केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को स्थगित करने के निर्णय के बाद इसे अमल में लाने के लिए केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री और मंत्रालय के अधिकारियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की। बैठक के बाद श्री पाटिल ने सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट में कहा , “ मोदी सरकार द्वारा सिंधु जल संधि पर लिया गया ऐतिहासिक निर्णय पूर्णतः न्यायसंगत और राष्ट्रहित में है। हम ख्याल रखेंगे कि पाकिस्तान में सिंधु नदी का एक बूंद पानी भी नहीं जाए ।”
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बैठक में आगे की कार्रवाई और सिंधु नदी का पानी पाकिस्तान में जाने से रोकने की वृहद रूपरेखा पर चर्चा कर रणनीति बनायी गयी तथा अधिकारियों को निर्देश दिये गये। जल संसाधन सचिव देबाश्री मुखर्जी ने पाकिस्तान के संबंधित विभाग के सचिव सैयद अली मुर्तजा को पत्र भेज कर भारत के फैसले की जानकारी दे दी है। पाकिस्तान सरकार ने पानी रोकने की कार्रवाई की तुलना ‘युद्ध की कार्रवाई’ से की है।
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सिंधु जल संधि पर रोक से लाभ से पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश समेत पूरे पश्चिमोत्तर भारत को लाभ होगा, लेकिन इसके लिए पूरे क्षेत्र में नहरों का जाल बिछाना होगा। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार जलसंधि पर रोक लगाने के फैसले का क्रियान्वयन करने लिए उच्च स्तर पर बैठकों का दौर जारी है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी आर पाटिल ने तगातार बैठक कर रहे हैं। जानकार सूत्रों का कहना है कि अगले दस दिन में पाकिस्तान की ओर जाने वाले जल प्रवाह को रोक दिया जाएगा। पंजाब में चेनाब नदी पर बालीघर और साल जल विद्युत परियोजना का पानी पूरी तरह से रोक दिया गया है।
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जानकारों का कहना है कि यह संधि पाकिस्तान के पक्ष में है और भारत को उसकी आवश्यकताओं तथा हितों के अनुरूप नदियों का जल नहीं मिल पाता है। संधि के अनुसार भारत रावी, ब्यास और सतलुज का जल प्रबंधन करता है जबकि पाकिस्तान सिंधु, झेलम और चेनाब का प्रबंध करता है। यह सभी नदियां पाकिस्तान में प्रवेश करती हैं। इससे अधिकतर जल पाकिस्तान के हिस्से में जाता है। दोनों देश जल वितरण के लिए एक-एक आयुक्त की नियुक्ति करते हैं और इसकी नियमित बैठक होती है। हालांकि पिछले लगभग तीन साल से उनकी कोई बैठक नहीं हुई है।
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जानकारों का कहना है कि सिंधु जल संधि पर रोक लगाने के फैसले का पाकिस्तान और भारत पर अलग-अलग असर होगा। यदि भारत इन नदियों का जल का प्रबंध नहीं करें तो पाकिस्तान के 60 प्रतिशत आबादी को भयंकर बाढ़ का सामना करना होगा। दूसरी ओर भारत में नदियों का जल रोकने लेने से पश्चिमोत्तर भारत में पानी का संकट दूर किया जा सकता है। हालांकि इसका लाभ लेने के लिए भारत को व्यापक स्तर पर जल वितरण का बुनियादी ढांचा विकसित करना होगा।इसके लिए पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, राजस्थान और गुजरात तक नहरों और बांघों का जाल बिछाना होगा। पंजाब – हरियाणा में निर्मित सतलुत – यमुना लिंक नहर का भी इसके लिए प्रयोग किया जा सकता है।
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भारत लंबे समय से सिंधु जल संधि की समीक्षा करने की मांग करता रहा है और इस पर वर्ष 2016 के बाद से तेजी आयी है। सिंधु नदी प्रणाली के अंतर्गत पानी का इस्तेमाल करने के लिए भारत में वर्ष 2016 के बाद से गंभीर प्रयास किए हैं और कई नदियों पर बांध बनाने की प्रक्रिया शुरू की है। हालांकि इन पर पाकिस्तान ने गंभीर आपत्ति जताई है और वह इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भी ले गया है। भारत ने इन नदियों के भारतीय क्षेत्र में कई परियोजना शुरू की है जिन पर काम हो रहा है। झेलम पर किशन गंगा बांध परियोजना पूरी हो चुकी है तथा चेनाब पर रैटल जल विद्युत परियोजना पर काम चल रहा है। झेलम नदी पर तुलबुल परियोजना फिर से शुरु की जा चुकी है। पंजाब में रावी नदी पर शाहपुरकुंडी बांध बनाने का काम वर्ष 2018 से चल रहा है। इसके लिए उझ परियोजना भी 2020 से काम चल रहा है। इन सभी का उद्देश्य पाकिस्तान की ओर जाने वाले जल प्रवाह रोकना है।
जल संसाधन मंत्रालय के पूर्व सचिव शशि शेखर का कहना है कि यह संधि पाकिस्तान के पक्ष में है और इस पर फिर से बातचीत होनी ही चाहिए। बारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान योजना आयोग में कृषि पर एक कार्यसमूह के सदस्य अजय कुमार का कहना है कि इससे छोटे किसानों की पानी तक पहुंच सुगम होगी। खास तौर पर भू जल संकट झेल रहे पश्चिमोत्तर भारत की कृषि भूमि को नया जीवन दान मिल सकेगा।
संधि पर रोक लगने से पाकिस्तान पर व्यापक असर होगा। पाकिस्तान में सिंधु नदी क्षेत्र की 80 प्रतिशत खेती, लगभग एक करोड़ 60 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। इससे लगभग 30 करोड़ लोगों का जीवन यापन होता है जो 61 प्रतिशत आबादी है। सिंधु और उसके साथ सहायक नदियों पर पाकिस्तान के प्रमुख शहर कराची, लाहौर और मुल्तान को भी जलापूर्ति होती है। जानकारों का कहना है कि इस फैसले से पाकिस्तान में खाद्यान्न में गंभीर गिरावट आ सकती है। इसके अलावा पाकिस्तान की तरबेला और मंगला जैसी बिजली परियोजनाएं भी इन्हीं नदियों पर निर्भर है। इससे बिजली उत्पादन में संकट आ सकता है। पाकिस्तान का सिंधु बेसिन भी जल संकट से जूझ रहा है जिससे पाकिस्तान के प्रांतों में आपसी संघर्ष बढ़ सकता है।