सेम की लाल चपटा किस्म की खेती से करें लाखों की कमाई जानिए कैसे यह देसी वैरायटी कम लागत में दिलाएगी बंपर मुनाफा और शानदार उत्पादन
अगर आप ऐसी फसल की तलाश में हैं जो कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे तो सेम की खेती आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प है। यह सब्जी बाजार में हमेशा मांग में रहती है और आते ही तुरंत बिक जाती है। सेम की खेती आसान होने के साथ साथ किसानों को अच्छी आमदनी भी देती है। आज हम आपको बताएंगे सेम की एक खास किस्म लाल चपटा के बारे में जो स्वाद और उत्पादन दोनों में नंबर वन मानी जाती है।
सेम की लाल चपटा किस्म क्यों है खास
खेती के लिए मिट्टी और जलवायु
सेम की लाल चपटा किस्म की खेती के लिए हल्की दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है जिसमें पानी की निकासी अच्छी हो। मिट्टी का pH मान 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। बुवाई से पहले खेत में अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद डालने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पौधों का विकास बेहतर होता है।
बुवाई की सही विधि और दूरी
इस किस्म की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 25 से 30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई से पहले बीजों का उपचार ट्राइकोडर्मा विरिडी 4 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से करना चाहिए ताकि फफूंद जनित रोगों से बचाव हो सके। पौधों के बीच 30 से 45 सेंटीमीटर और पंक्तियों के बीच 60 से 75 सेंटीमीटर की दूरी रखना उचित रहता है।
फसल तैयार होने का समय और उत्पादन
बुवाई के लगभग 60 दिन बाद लाल चपटा किस्म की फसल पहली तोड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। यह फसल जल्दी उत्पादन देने वाली है और बाजार में इसकी ताजी फलियाँ तुरंत बिक जाती हैं। एक हेक्टेयर में इस किस्म की खेती से 100 से 120 क्विंटल तक फलियों का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
सेम की खेती से होने वाली कमाई
सेम की लाल चपटा किस्म किसानों को 1.5 से 2 लाख रुपये तक का शुद्ध मुनाफा दिला सकती है। बाजार में इसकी फलियाँ बहुत पसंद की जाती हैं क्योंकि ये स्वादिष्ट और मुलायम होती हैं। उचित देखभाल और संतुलित खाद प्रबंधन से किसान इससे और भी अधिक आमदनी कमा सकते हैं।
सेम की लाल चपटा किस्म की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प है। इसकी खेती आसान है और इसका बाजार मूल्य हमेशा ऊँचा रहता है। अगर किसान सही विधि से खेती करें तो यह फसल कुछ ही महीनों में लाखों की कमाई करा सकती है।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी कृषि विशेषज्ञों और विभिन्न अनुसंधान संस्थानों से प्राप्त सुझावों पर आधारित है। खेती करने से पहले अपने स्थानीय कृषि अधिकारी या विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।
