नयी दिल्ली- उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश का स्वत: संज्ञान लिया है, जिसमें कहा गया था कि स्तनों को पकड़ना, पायजामे की डोरी तोड़ना बलात्कार के प्रयास के आरोप के लिए पर्याप्त नहीं है।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ बुधवार को इस मामले में सुनवाई करेगी। शीर्ष अदालत ने स्वत: संज्ञान मामले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित दिनांक 17 मार्च, 2025 के आदेश और सहायक मुद्दों के रूप में दर्ज किया है।
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उच्च न्यायालय ने एक मामले में सुनवाई के बाद अपने आदेश कहा था कि लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे की डोरी तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार के प्रयास के आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि ये केवल “तैयारी” का मामला है। ये अपराध करने के वास्तविक प्रयास से अलग है।
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उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने दो आरोपियों द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए ये टिप्पणी की।
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आरोपियों ने अपनी याचिका में निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार का प्रयास) के साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम की धारा 18 के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए कहा था।
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उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा, “अभियोजन पक्ष के अनुसार, केवल यह तथ्य कि दो आरोपियों, पवन और आकाश ने पीड़िता के स्तनों को पकड़ा। उनमें से एक ने उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया, लेकिन राहगीरों या गवाहों के हस्तक्षेप पर वे भाग गए, धारा 376, 511 आईपीसी या धारा 376 आईपीसी के साथ पोक्सो अधिनियम की धारा 18 के तहत लाने के लिए पर्याप्त नहीं है।”
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आदेश में आगे कहा गया कि बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए, अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना होगा कि कृत्य तैयारी के चरण से आगे बढ़ चुका था। तैयारी और अपराध करने के वास्तविक प्रयास के बीच का अंतर मुख्य रूप से दृढ़ संकल्प की अधिक मात्रा में निहित है।
अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि आरोपी ने पीड़िता के स्तनों को पकड़ा, उसके निचले वस्त्र का नाड़ा तोड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया, लेकिन गवाहों के हस्तक्षेप करने पर भाग गया।