अमेरिकी सीनेटर ने भारत-चीन से आने वाली जेनेरिक दवाओं पर बढ़ती निर्भरता पर जताई चिंता, आखिर वजह क्या?

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 वाशिंगटन। अमेरिका के एक सीनेटर ने भारत और चीन समेत दूसरे देशों में बनी जेनेरिक दवाओं पर बढ़ती निर्भरता को लेकर गंभीर चिंता जताई है। सीनेटर रिक स्कॉट का कहना है कि भारत और चीन से आने वाली जेनेरिक दवाएं पर बढ़ती निर्भरता अमेरिकी परिवारों के लिए खतरा बन सकती है। सीनेट की स्पेशल कमेटी ऑन एजिंग के अध्यक्ष सीनेटर रिक स्कॉट ने बुधवार (स्थानीय समय) को कहा कि अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली जेनेरिक दवाओं और उनके कच्चे रसायनों का बड़ा हिस्सा विदेशों में बनता है।

यह स्थिति न सिर्फ सार्वजनिक स्वास्थ्य बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है। रिक स्कॉट ने कहा, "जो भी अमेरिकी दूसरे देशों में बनी जेनेरिक दवाओं पर निर्भर है, उसे अपनी दवाओं में छिपे इंग्रीडिएंट्स के बारे में जानने का हक है।" उनकी समिति अमेरिका की दवा आपूर्ति शृंखला में मौजूद कमजोरियों को उजागर करने के लिए एक बार फिर सक्रिय हुई है। सीनेटर स्कॉट इस मुद्दे पर समिति की वरिष्ठ सदस्य सीनेटर किर्स्टन गिलिब्रैंड के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इसके तहत कई जांच, सुनवाई और सरकारी एजेंसियों और उद्योग जगत के साथ संवाद किए गए हैं। सीनेटर स्कॉट के अनुसार, अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली जेनेरिक दवाओं में लगभग 80 प्रतिशत एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स (एपीआई) विदेशों से आते हैं। इनमें से कई दवाएं असुरक्षित और गंदी फैक्ट्रियों में तैयार की जाती हैं, जहां निरीक्षण बहुत कम होता है। कुछ मामलों में इन दवाओं से गंभीर स्वास्थ्य नुकसान होता है। उन्होंने कहा, "ये दवाएं लोगों के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकती हैं।

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इसके अलावा, विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता एक रणनीतिक कमजोरी भी है।" स्कॉट ने चेतावनी दी कि चीन किसी भी समय दवाओं की आपूर्ति रोक सकता है, जिससे बुजुर्गों, सेना के जवानों और आम अमेरिकियों को जरूरी दवाएं नहीं मिल पाएंगी। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही विदेशी फैक्ट्रियों में कुछ अचानक निरीक्षण किए जा रहे हों, लेकिन अमेरिकी एफडीए अमेरिका के बाहर स्थित दवा इकाइयों की तुलना में देश के भीतर कहीं ज्यादा निरीक्षण करता है। कई बार विदेशी कंपनियों को नियमों के उल्लंघन पर भी छूट दे दी जाती है ताकि सप्लाई चेन बाधित न हो। समिति की एक जांच रिपोर्ट में बताया गया कि अमेरिका में दवाओं का घरेलू उत्पादन तेजी से घटा है। वर्ष 2024 में अमेरिका ने अपनी जरूरत की सिर्फ 37 प्रतिशत दवाएं खुद बनाईं, जबकि 2002 में यह आंकड़ा 83 प्रतिशत था। रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में इस्तेमाल होने वाले 95 प्रतिशत आइबुप्रोफेन, 70 प्रतिशत पैरासिटामोल और 45 प्रतिशत से अधिक पेनिसिलिन चीन से आते हैं।

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रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि दुनियाभर में एंटीबायोटिक दवाओं में इस्तेमाल होने वाले लगभग 90 प्रतिशत एपीआई चीन में बनते हैं। वहीं, अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली शीर्ष 100 जेनेरिक दवाओं में से 83 प्रतिशत के एपीआई का कोई भी स्रोत अमेरिका में नहीं है। भारत की भूमिका भी इस आपूर्ति शृंखला में अहम है। अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली लगभग 50 प्रतिशत जेनेरिक दवाएं भारत से आती हैं, लेकिन भारतीय कंपनियां भी अपने लगभग 80 प्रतिशत एपीआई के लिए चीन पर निर्भर हैं। समिति ने 2025 के एक अध्ययन का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि भारत में बनी जेनेरिक दवाओं से जुड़े गंभीर दुष्प्रभाव अमेरिका में बनी समान दवाओं की तुलना में 54 प्रतिशत अधिक पाए गए। इन दुष्प्रभावों में स्थायी विकलांगता या मौत जैसे जोखिम शामिल हैं।

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सीनेटर स्कॉट ने कहा कि अमेरिकियों को अपनी दवाओं की सुरक्षा और उपलब्धता को लेकर 'जुआ खेलने' के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने दवा प्रणाली में भरोसा बहाल करने के लिए तत्काल सुधारों की मांग की। समिति की रिपोर्ट में कई सुझाव दिए गए हैं, जिनमें जरूरी दवाओं के लिए अमेरिकी निर्मित उत्पादों को प्राथमिकता देने वाला फेडरल बायर मार्केट बनाना, दवा आपूर्ति शृंखला की मैपिंग, दवाओं के मूल देश की जानकारी अनिवार्य करना, व्यापारिक जांच जैसे सेक्शन 232 का इस्तेमाल, 'मेड इन अमेरिका' लेबल के दुरुपयोग को रोकना और अमेरिकी बायोटेक्नोलॉजी को बढ़ावा देना शामिल है। ध्यान देने वाली बात है कि भारत और चीन आज भी वैश्विक जेनेरिक दवा उद्योग के बड़े केंद्र हैं और अमेरिका सहित दुनिया भर में सस्ती दवाओं की आपूर्ति करते हैं।

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