नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को बॉम्बे हाई कोर्ट की कोल्हापुर पीठ की स्थापना पर सवाल उठाने वाली याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसकी स्थापना सभी को न्याय देने के संवैधानिक दृष्टिकोण के अनुरूप है। वकील रंजीत बाबूराव निम्बालकर ने कोल्हापुर में बॉम्बे उच्च न्यायालय की कोल्हापुर पीठ की स्थापना का विरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। इस पर अंतिम सुनवाई गुरुवार को जस्टिस अरविंद कुमार और एनवी अंजारिया की पीठ के सामने हुई। दोनों न्यायमूर्तियों ने अधिवक्ता निम्बालकर की याचिका खारिज कर दी और साफ किया कि पीठ की स्थापना का फैसला आम लोगों के हित में है।
कोल्हापुर सहित छह जिलों के लिए कोल्हापुर में बॉम्बे हाई कोर्ट की पीठ स्थापित करने का फैसला सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने लिया था। इसका उद्घाटन न्यायमूर्ति गवई ने 18 अगस्त को किया था और इसका कामकाज भी शुरू हो गया था।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह फैसला राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा 51(3) के तहत मुख्य न्यायाधीश को दी गयी शक्तियों के तहत लिया गया है। यह किसी के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है। इसके विपरीत, इससे बॉम्बे हाई कोर्ट से दूर रहने वाले लोगों के लिये न्याय पाना आसान हो गया है। भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अधिवक्ता संदीप देशमुख राज्य सरकार की ओर से पेश हुए।
इस बीच, कोल्हापुर जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष वीआर पाटिल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का फैसला कोल्हापुर सर्किट बेंच को पीठ में बदलने की प्रक्रिया को मजबूत करेगा। इसके नतीजे जल्द ही देखने को मिलेंगे। सांगली, सतारा, सोलापुर, रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग और कोल्हापुर सहित छह जिलों के सभी वकीलों और वादियों ने इस फैसले का स्वागत किया है।