बाढ़ में डूबे किसानों के जख्मों पर नमक; अजित पवार के मंत्री बालासाहेब पाटिल के बयान से मचा बवाल

Maharashtra News: महाराष्ट्र में बाढ़ और फसल बर्बादी के बीच किसानों की कर्जमाफी को लेकर सियासत गरमा गई है। जहां विपक्ष लगातार किसानों के लिए ऋणमाफी की मांग पर दबाव बना रहा है, वहीं अजित पवार की एनसीपी से जुड़े सहकारिता मंत्री बालासाहेब पाटिल के एक बयान ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। जलगांव में एक जनसभा के दौरान पाटिल ने कहा कि “किसानों को कर्जमाफी की लत लग चुकी है।” यह बयान विपक्ष को सरकार पर हमला करने का नया मौका दे गया है और राजनीतिक गलियारे में हड़कंप मचा हुआ है।
किसानों की पीड़ा पर ‘बेतुका’ बयान

‘हमें नदी चाहिए’ वाली मिसाल से भड़की बहस
जलगांव की सभा में बोलते हुए पाटिल ने कहा कि चुनावों के वक्त अक्सर झूठे वादे कर दिए जाते हैं, लेकिन जनता को सोचना चाहिए कि उसे वास्तव में क्या चाहिए। उन्होंने कहा कि कभी किसी गांव में लोगों ने नेता से कहा कि हमें नदी चाहिए, और चुनाव जीतने के लालच में नेता ने बिना सोचे वह वादा कर दिया - भले ही वह पूरा न हो सके। पाटिल का यह बयान ऐसे समय आया है जब हाल ही में सरकार ने बाढ़ पीड़ित किसानों के लिए 32 हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की थी। विपक्ष का कहना है कि जब किसान तबाही के दौर से गुजर रहा है, तब ऐसे बयान देना संवेदनहीनता की हद है।
विपक्ष ने बताया किसानों का अपमान
पाटिल के बयान के बाद विपक्ष हमलावर हो गया। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा कि यह बयान “अत्यंत गैर-जिम्मेदाराना और निर्लज्जता भरा” है। उन्होंने कहा कि जब किसान आर्थिक संकट से टूट चुका है, तब मंत्री का इस तरह का बयान देना घाव पर नमक छिड़कने जैसा है। कांग्रेस ने मांग की है कि फडणवीस ऐसे मंत्रियों को तुरंत मंत्रिमंडल से बाहर करें। वहीं सत्ता पक्ष के कुछ नेता भी पाटिल की टिप्पणी से असहज दिख रहे हैं और खुले तौर पर आलोचना कर रहे हैं।
विवाद बढ़ा तो पाटिल ने मांगी माफी
सियासी बवाल बढ़ता देख मंत्री बालासाहेब पाटिल को सफाई देनी पड़ी। उन्होंने कहा कि उनका मकसद किसानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। पाटिल ने कहा, “अगर मेरे बयान से किसानों को दुख पहुंचा है तो मैं खेद व्यक्त करता हूं।” उन्होंने स्पष्ट किया कि वर्तमान आर्थिक स्थिति को देखते हुए सरकार के लिए हर बार कर्जमाफी देना संभव नहीं है। बावजूद इसके, राजनीतिक नुकसान का डर साफ झलक रहा है क्योंकि किसानों का रोष बढ़ रहा है और आने वाले चुनावों में यह बयान सरकार के लिए भारी पड़ सकता है।