तीन दिवसीय गुजरात यात्रा की शुरुआत में राष्ट्रपति मुर्मू ने द्वारकाधीश मंदिर में की पूजा, देशवासियों की सुख शांति की कामना

Gujarat News: तीन दिवसीय गुजरात दौरे पर पहुंचीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को द्वारकाधीश मंदिर में पूजा-अर्चना कर अपने कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में शीश नवाया और देशवासियों की सुख, समृद्धि और शांति की कामना की। इस अवसर पर मंदिर परिसर में मौजूद श्रद्धालुओं ने राष्ट्रपति का स्वागत किया और जयकारों से माहौल भक्तिमय बना दिया। राष्ट्रपति मुर्मू ने अपनी बेटी के साथ पूजा करते हुए कहा कि उन्हें इस दिव्य स्थल पर आकर अपार शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव हुआ।
द्वारकाधीश के चरणों में राष्ट्रपति की आस्था

भावभीनी प्रार्थना से गूंजा मंदिर परिसर
इस धार्मिक यात्रा में राष्ट्रपति ने भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष प्रार्थना करते हुए कहा कि वह संपूर्ण भारतवासियों की भलाई, सौहार्द और उन्नति की मनोकामना करती हैं। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति में धर्म, सौहार्द और सेवा की भावना सबसे महान है और द्वारका उसी अध्यात्म का प्रतीक है। इस अवसर पर उनके साथ मौजूद गणमान्य व्यक्तियों ने भी देश की समृद्धि और खुशहाली के लिए प्रार्थना की।
द्वारकाधीश मंदिर में हुआ भव्य स्वागत
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जब द्वारकाधीश मंदिर पहुंचीं तो प्रशासन और स्थानीय अधिकारियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। स्वागतकर्ताओं में पर्यटन मंत्री मुलुभाई बेरा, जिला कलेक्टर राजेश तन्ना, रेंज आईजी अशोक कुमार यादव, पुलिस अधीक्षक जयराज सिंह वाला, प्रांतीय अधिकारी अमोल अवाते और उप कलेक्टर हिमांशु चौहान शामिल थे। राष्ट्रपति को पारंपरिक गुजराती पगड़ी पहनाई गई और पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मानित किया गया।
मिली आध्यात्मिक स्मृतियां और उपहार
द्वारका के इस विशेष अवसर पर राष्ट्रपति को मंदिर प्रशासन और स्थानीय अधिकारियों की ओर से कई स्मृति उपहार प्रदान किए गए। इनमें द्वारकाधीश मंदिर की सुंदर प्रतिकृति, स्वर्ण-जड़ित भगवान की मूर्ति, तुलसी से बनी अनुग्रहम अगरबत्ती और प्रसाद शामिल थे। इन उपहारों के माध्यम से द्वारका की संस्कृति और परंपरा की गहराई को दर्शाया गया। राष्ट्रपति ने इन भावनात्मक पलों को अपने जीवन का ‘आध्यात्मिक अनुभव’ बताया।
आध्यात्मिकता और संस्कृति का संगम बना राष्ट्रपति का दौरा
राष्ट्रपति मुर्मू का यह दौरा केवल धार्मिक यात्रा नहीं रहा, बल्कि भारत की प्राचीन संस्कृति और अध्यात्म के प्रति एक सशक्त संदेश भी रहा। द्वारका में बिताए इन पलों ने राष्ट्रपति को भक्ति और ऊर्जा से भर दिया। यह यात्रा राज्य और देश दोनों के लिए एक सांस्कृतिक क्षण साबित हुई, जिसने राष्ट्राध्यक्ष की सादगी और आध्यात्मिकता को नए सिरे से प्रकट किया।