श्राद्ध पक्ष विशेष : सच्ची श्रद्धा व पितरों से जुड़े हैं श्राद्ध

सात सितंबर आश्विन मास की प्रतिपदा के साथ ही श्राद्ध पक्ष प्रारम्भ हो गया है । पूर्वजों के प्रति श्रद्धा तथा उनके तर्पण और मुक्ति हेतु सनातन परंपरा में श्राद्ध करने की परंपरा है । पितृ पक्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक रहता है। पितृ पक्ष में पितरों को खुश करने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्राद्ध किए जाते हैं।
श्राद्धों के प्रकार
मत्स्य पुराण में त्रिविधं श्राद्ध मुच्यते यानि तीन प्रकार के श्राद्ध नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य का उल्लेख है। यमस्मृति में नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण श्राद्ध के नाम से जाना जाता है जबकि निर्णय सिन्धु में 12 प्रकार के श्राद्धों का उल्लेख मिलता है।
नित्य श्राद्धः कोई भी व्यक्ति अन्न, जल, दूध, कुशा, पुष्प व फल से प्रतिदिन श्राद्ध करके अपने पितरों को प्रसन्न कर सकता है।
नैमित्तक श्राद्ध- यह श्राद्ध विशेष अवसर पर किया जाता है। जैसे- पिता आदि की मृत्यु तिथि के दिन इसे एकोदिष्ट कहा जाता है। इसमें विश्वदेवा की पूजा नहीं की जाती है, केवल मात्र एक पिण्डदान दिया जाता है।
काम्य श्राद्धः किसी कामना विशेष के लिए यह श्राद्ध किया जाता है। जैसे- पुत्र की प्राप्ति आदि।
वृद्धि श्राद्धः यह श्राद्ध सौभाग्य वृद्धि के लिए किया जाता है।
सपिंडन श्राद्ध- मृत व्यक्ति के 12 वें दिन पितरों से मिलने के लिए किया जाता है। इसे स्त्रियॉ भी कर सकती है।
पार्वण श्राद्धः पिता, दादा, परदादा, सपत्नीक और दादी, परदादी, व सपत्नीक के निमित्त किया जाता है। इसमें दो विश्वदेवा की पूजा होती है।
गोष्ठी श्राद्धः यह परिवार के सभी लोगों के एकत्र होने के समय किया जाता है।
कर्मागं श्राद्धः यह श्राद्ध किसी संस्कार के अवसर पर किया जाता है।
शुद्धयर्थ श्राद्धः यह श्राद्ध परिवार की शुद्धता के लिए किया जाता है।
कौन करे श्राद्ध :
भारतीय धर्म संस्कृति में पितरों को देवतुल्य माना गया है। मातृ देवो भवः तथा पितृ देवो भवः की भावना हमारी संस्कृति में उनके दिव्य स्थान को प्रदर्शित करती है । यदि मृत पिता की संपत्ति का बंटवारा हो चुका हो तथा सभी पुत्र अलग-अलग रहते हों तो सभी पुत्रों को अलग-अलग श्राद्ध करना चाहिए।
कितनी पीढ़ियों का श्राद्ध :
प्रत्येक सनातनधर्मी को तीन पीढ़ियों- पिता, पितामह तथा प्रपितामह के साथ ही अपने नाना तथा नानी का भी श्राद्ध करना चाहिए जबकि कुछ विद्वानों का मानना है कि सात पीढ़ियों का श्राद्ध किया जाना चाहिए जिनमें व्यक्ति, उसका पिता, पितामह, प्रपितामह, वृद्ध पितामह, अतिवृद्ध पितामह और सबसे बड़े वृद्धातिवृद्ध पितामह, ये सात पीढियां होती हैं। इनमें से वृद्धातिवृद्ध पितामह का एक अंश, अतिवृद्ध पितामह का तीन अंश, वृद्ध पितामह का छह अंश, प्रपितामह का दस अंश, पितामह का पंद्रह अंश और पिता का इक्कीस अंश व्यक्ति को मिलता है।
पितृ पक्ष का महत्व
मान्यता है कि पितृ पक्ष में तर्पण करने से पितर आशीर्वाद प्रदान करते हैं. उनकी कृपा से जीवन में आने वाली कई प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। व्यक्ति को समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है । सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
श्राद्ध करने का विधान
पितृपक्ष में हम अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करें । यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है। जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है उसी दिन किसी निर्धन को भोजन भी कराया जाता है । पितृतर्पण एवं श्राद्ध करने का विधान यह है कि सर्वप्रथम हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् एवं जल लेकर संकल्प करें- इसके बाद पितरों का आह्वान “ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।।” मंत्र से करें जिसका अर्थ है आज श्रुति स्मृति पुराणों के अनुसार समस्त सांसारिक सुख, समृद्धि एवं वंश वृद्धि हेतु देव, ऋषि, मनुष्य एवं पूर्वजों का मैं तर्पण करूंगा ।
श्राद्ध कर्म मंत्र
पितृ तर्पण के बाद सूर्यदेव को साष्टांग प्रणाम करके उन्हें अर्घ्य देना चाहिए। तत्पश्चात् भगवान वासुदेव स्वरूप पितरों को स्वयं के द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म इस मन्त्र से अर्पित करें- “अनेन यथाशक्ति कृतेन देवऋषिमनुष्यपितृतरपण आख्य कर्म भगवान पितृस्वरूपी जनार्दन वासुदेव प्रियताम नमम। ॐ ततसद ब्रह्मा सह सर्व पितृदेव इदम श्राद्धकर्म अर्पणमस्तु।।” ॐविष्णवे नम:, ॐविष्णवे नम:, ॐविष्णवे नम:।। इसे तीन बार कहकर तर्पण करना चाहिए।
पितृदोष
कहा जाता है कि यदि पूर्वजों का श्रद्धापूर्वक श्राद्ध न किया जाए तो पितृदोष लगता है । श्राद्धकर्म-शास्त्र में उल्लिखित है-“श्राद्धम न कुरूते मोहात तस्य रक्तम पिबन्ति ते।” अर्थात् मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बंधियों का रक्त-पान करते हैं। उपनिषद में भी श्राद्धकर्म के महत्व पर प्रमाण मिलता है- “देवपितृकार्याभ्याम न प्रमदितव्यम ...।” अर्थात् देवता एवं पितरों के कार्यों में प्रमाद (आलस्य) मनुष्य को कदापि नहीं करना चाहिए।
श्राद्ध पक्ष में वर्जित :
पितृपक्ष में गाय, कुत्ते, कौवे सहित किसी भी जीवधारी व परिवार सहित किसी भी बुजुर्ग व्यक्ति का अपमान न करें , श्राद्ध पक्ष में मैथुन करना वर्जित माना गया है, क्योंकि इस दौरान आपके पितर पृथ्वी पर आते हैं। पारिवारिक कलह, लड़ाई-झगड़ों का भी त्याग करें।
इन दिनों ग्रहों की शांति के लिए दान-पुण्य और पूजा पाठ किए जाते हैं, इस दौरान 5 जरूरी बातों का ध्यान अवश्य रखें।
जीव हत्या नहीं
किसी भी पक्षी या जानवर खासतौर पर गाय, कुत्ता, बिल्ली, कौए को श्राद्ध पक्ष में नहीं मारना चाहिए. जानवरों की भी सेवा करनी चाहिए. उन्हें भोजन कराएं और पानी पिलाएं।
तामसी भोजन नहीं
पितृपक्ष के दौरान खान-पान बिल्कुल साधारण होना चाहिए. मांस, मछली, अंडे का सेवन नहीं करना चाहिए. भोजन बिल्कुल सादा होना चाहिए यानी खाने में प्याज और लहसुन का भी इस्तेमाल ना करें. शराब और किसी भी नशीली चीजों से दूर रहें।
मैथुन भी वर्जित
इन दिनों स्त्री पुरुष को संबंध बनाने से बचना चाहिए. परिवार में शांति बनाए रखें और भोग- विलास की चीजों से बचें. इन दिनों आपका पूरा ध्यान सिर्फ पूर्वजों की सेवा में होना चाहिए.
नई खरीदारी नहीं
कोई भी नया काम इन दिनों में शुरू नहीं करना चाहिए. श्राद्ध पक्ष में शोक व्यक्त कर पितरों को याद किया जाता है. इसलिए इन दिनों में किसी भी जश्न और त्यौहार का आयोजन न करें. इसके अलावा कोई नया समान भी इस समय खरीदने से बचें।
वैसे विद्वान यह भी मानते हैं कि पितृ सदैव अपनी संतान को देखकर प्रसन्न ही होते हैं, उनकी खुशियों में खुश रहते हैं तथा वे कभी भी अपनी संतानों को कष्ट नहीं दे सकते, अतः पितृ दोष आदि के नाम पर पूर्वजों से भयभीत होने की जरूरत नहीं है ।
-डॉ घनश्याम बादल
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