मृत्यु को न डर, क्योंकि आत्मा अमर है — जीवन का सच्चा स्वागत मृत्यु के बाद होता है

जिस कन्या ने वर की विशेषताओं को जांच परखकर स्वेच्छा से उसे वरण किया है। वर के श्रेष्ठ सुन्दर भवन को पहले ही देख लिया हो उसे विदाई के समय दुख चिंताएं अथवा किसी प्रकार की आशंका क्यों होगी। वह तो अपने घर से खुशी-खुशी विदा होगी। वैसे ही मृत्यु रूपी विदाई के समय उस अज्ञानी की चित्तवृत्ति रूपी कन्या चिन्तातुर और आशंकित अवश्य होगी जो स्वयं सच्चिदानन्द रूपी पति के स्वाभाव, श्रेष्ठता, अमरता रूपी सद्गुणों से परिचित नहीं, किन्तु जिस तत्वज्ञ पुरूष की चित्तवृत्ति रूपी कन्या पति के गुण, धर्म, श्रेष्ठता से परिचत होकर जीवन काल में ही उसमें रमण कर चुकी है उसे मृत्यु रूपी विदाई के समय सच्चिदानन्द के घर जाने में क्या भय? इसलिए हे प्राणी मृत्यु का भय मन से निकाल दे, क्योंकि जब मृत्यु होगी इस शरीर की होगी। आप तो अमर आत्मा है, मृत्यु से परे है। आत्मा को तो न शस्त्र काट सकता है न अग्रि जला सकती है। आत्मा को इस शरीर का त्याग करने के पश्चात नया शरीर मिलेगा। शुभ कर्म किये हैं तो निश्चित ही वह मानव शरीर होगा। नये परिजन आपकी प्रतीक्षा में होंगे। तुम्हारे वहां पहुंचने पर खुशियां मनेगी, मिठाईयां बंटेगी। एक-दूसरे को बधाईयां दी जायेगी। आपका स्वागत होगा तो फिर अपने स्वागत के लिए तैयार रहिए।