अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ठ जन दिवस पर विशेष: हर पुत्र के लिए सबक, हर पिता के लिए आशा

आज अन्तर्राष्ट्रीय वरिष्ठ जन दिवस है। इस पुनीत अवसर पर आधुनिक युवाओं के लिए एक शिक्षाप्रद दृष्टांत बहुत ही प्रासांगिक होगा। एक पुत्र अपने पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टोरेंट में ले गया। वृद्ध पिता ने भोजन करते कई बार खाना अपने कपड़ों पर गिरा दिया। इस बीच रेस्तरां में बैठे कई लोग उन्हें घृणा की दृष्टि से देख रहे थे, लेकिन पुत्र शांत था। खाने के बाद पुत्र बिना किसी शर्म के वृद्ध को वाश रूम ले गया, उनके कपड़े साफ किये, चेहरा धोया, बालों में कंघी की चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया। तभी काउंटर पर बैठे रेस्तरां के प्रौढ स्वामी ने युवक को आवाज दी और पूछा-पुत्र क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम अपने पीछे कुछ छोडकर जा रहे हो? उसने जवाब दिया नहीं, सर मैं कुछ छोड़कर नहीं जा रहा हूं। प्रौढ रेस्तरां स्वामी ने समझाया कि तुम यहां प्रत्येक पुत्र के लिए एक सबक तथा प्रत्येक पिता के लिए एक आशा की किरण छोड़कर जा रहे हो। बहुधा हम अपने बुजुर्गों को बाहर ले जाना पसंद नहीं करते। कहते हैं कि क्या करोगे जाकर आपसे तो ठीक से चला भी नहीं जाता। ठीक से खाया-पिया भी नहीं जाता, आप घर पर ही रहो, लेकिन क्या आप भूल गये जब आप छोटे थे, तब आपको माता-पिता गोद में उठाकर ले जाया करते थे। आप ठीक से खा भी नहीं पाते थे तो मां आपको अपने हाथ से खिलाती थी पर खाना गिर जाने पर डांटती नहीं थी अपितु प्यार जताती थी न जाने मां-बाप बुढापे में बोझ क्यो लगते हैं? माता-पिता भगवान का रूप होते है उनकी सेवा कीजिए। वे खुश रहे ऐसी परिस्थिति पैदा करते रहिए क्योंकि आपको भी एक दिन वृद्ध होना है।