जीवन और मृत्यु पर गहन विचार प्रस्तुत करते हुए आध्यात्मिक विद्वानों का कहना है कि शरीर का वास्तविक मूल्य उसकी आत्मा से जुड़ा है। शरीर मांस, हड्डी, रक्त, त्वचा और अन्य तत्वों से बना है, लेकिन यह केवल तभी मूल्यवान है जब यह आत्मा के साथ संलग्न हो।
विशेषज्ञों के अनुसार, जब आत्मा शरीर से निकल जाती है, तब शरीर केवल मृत या बेजान पदार्थ बन जाता है। शरीर के अंग चाहे कितने भी सुंदर क्यों न हों, उनकी कोई वास्तविक उपयोगिता या आकर्षण नहीं रह जाता। शरीर की सुन्दरता और आकर्षकता वास्तव में आत्मा की चेतना और प्रकाश का परिणाम होती है।
आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो मृत्यु के बाद या जब शरीर से आत्मा अलग हो जाती है, तब शरीर कितना भी सजाया-संवारा क्यों न गया हो, वह भयावह और निराशाजनक प्रतीत होता है। जीवन का असली सार आत्मा की पहचान और उसकी चेतना में निहित है।
विद्वानों का कहना है कि जीवन की वास्तविक सार्थकता शरीर में नहीं, बल्कि उस चेतन आत्मा में है। मानव को अपने भौतिक शरीर के बजाय आत्मा के महत्व को समझना चाहिए और उसी में जीवन का असली आनंद तलाशना चाहिए।