महामानवों के वचन किसी एक देश, वर्ग या समाज के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए होते हैं। चाहे कोई झोपड़ी में रहता हो या महल में, शासक हो या सामान्य नागरिक, छोटा हो या बड़ा—उनकी शिक्षाएँ सभी के लिए समान रूप से उपयोगी और महत्वपूर्ण हैं।
यदि मनुष्य उनके उपदेशों को जीवन में उतार ले, तो उसके व्यवहार में अद्भुत परिवर्तन आ सकता है। वह आग लगाने वाला नहीं, बल्कि आग बुझाने वाला बनेगा; किसी का जीवन बिगाड़ने के बजाय संवारने वाला बनेगा। वह गिराने की प्रवृत्ति छोड़कर गिरे हुए को संभालने वाला बनेगा, उजाड़ने वाला नहीं, बल्कि उजड़े हुए को बसाने वाला बनेगा।
ऐसा परिवर्तन यदि समाज में आ जाए, तो संसार का वातावरण स्वतः ही सुंदर और शांतिमय बन जाएगा। मनुष्य को समझना होगा कि विनाश के मार्ग पर चलकर वह स्वयं भी अशांत होगा और दूसरों को भी चैन से नहीं रहने देगा।
जब एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का सहायक बनेगा, तभी सभी के लिए उन्नति का मार्ग खुल सकेगा।
संतों और मनीषियों ने आदि काल से ही प्रेम, दया, नम्रता, सहयोग, संतोष और सेवा जैसे दिव्य गुणों का महत्व बताया है। इन शिक्षाओं को अपनाकर ही हम अपने जीवन को सार्थक और धन्य बना सकते हैं।