पशु-बलि नहीं, दया ही सच्चा धर्म—जानिए क्यों गलत है बकरे की बलि चढ़ाना
धार्मिक स्थलों पर पशु बलि की प्रथा को लेकर संत समाज ने एक बार फिर स्पष्ट और कड़ी टिप्पणी की है। कई मंदिरों में मां काली को प्रसन्न करने के नाम पर बकरे की बलि चढ़ाने की परंपरा पर सवाल उठाते हुए संतों का कहना है कि यह आस्था नहीं, बल्कि अज्ञान का परिणाम है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे कोई मनुष्य पेड़ से पत्ता तोड़कर उसे फिर से जोड़ नहीं सकता, उसी प्रकार जब जीव की जीवन शक्ति लौटाना आपके बस में नहीं, तो उसे छीनने का अधिकार भी नहीं है।
संतों ने कहा कि जीवों पर दया और संरक्षण ही परमात्मा की प्रसन्नता का वास्तविक मार्ग है। “यदि किसी को पीड़ा दोगे, वध करोगे, तो परमात्मा की न्याय व्यवस्था के अनुसार उसी प्रकार का दंड अवश्य मिलेगा। समय भले लग जाए, लेकिन न्याय निश्चित है, क्योंकि ईश्वर के न्याय में त्रुटि नहीं होती।”
धार्मिक नेताओं ने समाज से अनुरोध किया है कि वे आस्था के नाम पर क्रूर परंपराओं को त्यागें और जीवन के प्रति सम्मान को सर्वोपरि रखें।
