इस औषधीय फसल से कमाएं ₹1.5 लाख प्रति एकड़, अश्वगंधा की खेती कैसे बना सकती है किसान को करोड़पति

आज हम आपको एक ऐसी औषधीय खेती के बारे में बताने जा रहे हैं जो कम लागत में भी शानदार मुनाफा दे सकती है। हम बात कर रहे हैं अश्वगंधा की खेती की, जिसे आयुर्वेद में ‘भारतीय जिनसेंग’ के नाम से जाना जाता है। इसकी मांग सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी […]
आज हम आपको एक ऐसी औषधीय खेती के बारे में बताने जा रहे हैं जो कम लागत में भी शानदार मुनाफा दे सकती है। हम बात कर रहे हैं अश्वगंधा की खेती की, जिसे आयुर्वेद में ‘भारतीय जिनसेंग’ के नाम से जाना जाता है। इसकी मांग सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी तेजी से बढ़ रही है। यही वजह है कि अब किसान इसकी खेती की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं।
अब बात करते हैं इसकी खेती की। अश्वगंधा को शुष्क और गर्म जलवायु पसंद होती है। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है और मिट्टी का pH 7.5 से 8 के बीच होना चाहिए। खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था ज़रूरी होती है ताकि फसल की जड़ें सड़ें नहीं। अश्वगंधा को ज्यादा बारिश और पाले से नुकसान हो सकता है इसलिए इसके अनुसार ही बुवाई करें।
बुवाई का समय सितंबर से अक्टूबर के बीच होता है। बुवाई से पहले खेत को अच्छे से जोतें और कम से कम 15-20 दिन खुला छोड़ दें ताकि हानिकारक कीट नष्ट हो जाएं। बीजों को बोने से पहले फफूंदनाशक दवा से उपचारित करना जरूरी होता है जिससे फसल बीमारियों से सुरक्षित रहे। एक एकड़ में 5 किलो बीज पर्याप्त होते हैं। बीजों को बहुत गहराई में न बोएं, आधा से एक सेंटीमीटर की गहराई काफी होती है। पौधों के बीच 30-45 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
खाद प्रबंधन की बात करें तो प्रति एकड़ खेत में एक बोरी डीएपी, एक बोरी पोटैश, एक बोरी सिंगल सुपर फॉस्फेट, 5 किलो जिंक और 5 किलो सल्फर का प्रयोग करें। अगर आप जैविक तरीके से खेती करना चाहते हैं तो गोबर की खाद, जीवामृत और वर्मी कम्पोस्ट जैसे विकल्प भी बेहतरीन रहेंगे।
सिंचाई में अधिक पानी की ज़रूरत नहीं होती। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें और दूसरी 7-8 दिन बाद। तीसरी और चौथी सिंचाई 25-30 दिन के अंतराल पर करें। अंतिम सिंचाई कटाई से पहले 90 से 100 दिन में करें। खरपतवार को हटाने के लिए 20-25 दिन बाद पहली निराई करें। हर्बीसाइड का प्रयोग न करना ही बेहतर होता है।
अश्वगंधा की फसल को मुख्यतः 150 से 180 दिन में काटा जाता है। जब पौधे पक जाएं, तो जड़ों को मिट्टी से निकालकर तनों से अलग कर लें और छांव में 5-6 दिन तक सुखाएं। तेज धूप से बचाएं क्योंकि इससे जड़ों की गुणवत्ता खराब हो सकती है। एक एकड़ से 5 से 8 क्विंटल तक सूखी जड़ों का उत्पादन हो सकता है। इसके साथ ही पत्तियों और बीजों को भी बेचकर अतिरिक्त आमदनी की जा सकती है।
लागत की बात करें तो एक एकड़ में बीज, खाद, सिंचाई और श्रम का कुल खर्च लगभग ₹25,000 से ₹30,000 तक होता है। अगर सूखी जड़ों का भाव ₹300 प्रति किलो भी मिले तो 5 क्विंटल उत्पादन पर ₹1.5 लाख तक की कमाई हो सकती है। इसके अलावा पत्तियों और बीजों से अलग से ₹40,000–₹50,000 तक की कमाई संभव है। यानी एक एकड़ में लगभग ₹1–1.5 लाख का शुद्ध मुनाफा मिल सकता है।
बिक्री के लिए किसान दिल्ली की खारी बावली, लखनऊ की शहादतगंज, मध्यप्रदेश के नीमच और चंडीगढ़ की मंडियों में जा सकते हैं। इसके अलावा सीधी डील आयुर्वेदिक कंपनियों से करके भी अधिक कीमत प्राप्त की जा सकती है।
तो दोस्तों, अगर आप कम पानी, कम लागत और ज़्यादा मुनाफे वाली फसल की तलाश में हैं तो अश्वगंधा की खेती आपके लिए एक शानदार विकल्प है। आज ही योजना बनाएं और एक नई शुरुआत करें एक नई दिशा में।
Disclaimer:
यह जानकारी कृषि विशेषज्ञों और अनुभवी किसानों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। कृपया किसी भी फसल की शुरुआत से पहले स्थानीय कृषि अधिकारी से संपर्क कर ज़रूर पुष्टि कर लें।
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