कम लागत में करें खेती का ऐसा अनोखा बिज़नेस, जिसकी एक-एक किलो की कीमत हजारो में बिकती है
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किसान की जिंदगी कभी आसान नहीं रही है। कभी सूखा तो कभी बाढ़ उनकी मेहनत को मिट्टी में मिला देती है। ऐसे हालात में अगर कोई फसल डूबते को तिनके का सहारा बन जाए तो उससे बेहतर किसान के लिए और क्या हो सकता है। आज हम आपको एक ऐसी फसल के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी खेती बाढ़ ग्रस्त इलाकों में भी की जा सकती है और जो किसानों को शानदार मुनाफा दिला सकती है। यह फसल है कलाई जिसे काला सोना भी कहा जाता है।
कलाई की खेती क्यों खास है
कलाई की खेती का तरीका और मिट्टी
कलाई की खेती दलदली और कीचड़नुमा जमीन में भी की जा सकती है लेकिन अगर किसान अच्छी पैदावार चाहते हैं तो उपजाऊ दोमट और रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उत्तम होती है। बीज बोने से पहले खेत की तैयारी करना जरूरी है। मिट्टी में अच्छी तरह खाद और नमी होनी चाहिए। कलाई के बीजों को लगभग 3 से 4 सेंटीमीटर गहराई में बोया जाता है और अच्छी फसल के लिए प्रति एकड़ 10 से 12 किलो बीज की जरूरत होती है।
बरसात के मौसम में सिंचाई की अधिक जरूरत नहीं होती लेकिन अगर मौसम सूखा पड़ जाए तो 2 से 3 बार सिंचाई करना जरूरी होता है। साथ ही खरपतवार नियंत्रण पर भी ध्यान देना होता है। कलाई की फसल को पकने में लगभग 130 से 150 दिन का समय लगता है और जब इसकी फलियां लगभग 80% भूरे रंग की हो जाएं तभी इसकी कटाई करनी चाहिए।
कलाई की खेती से मुनाफा
दोस्तों कलाई की सबसे बड़ी खासियत यही है कि इसकी कीमत बाजार में काफी ज्यादा मिलती है। आज की तारीख में कलाई करीब 10 हजार रुपये प्रति क्विंटल बिकती है। यानी अगर किसान एक एकड़ में इसकी खेती करें तो आसानी से लाखों रुपये तक की कमाई कर सकते हैं। यही नहीं कलाई से दाल के साथ-साथ हरा चारा भी मिलता है जो जानवरों के लिए बेहद पौष्टिक माना जाता है। इसे खाने से पशुओं के दूध उत्पादन में भी काफी बढ़ोतरी हो जाती है।
कलाई की खेती किसानों के लिए हर हालात में फायदे का सौदा है। चाहे बाढ़ हो या सूखा यह फसल किसान की उम्मीदों को टूटने नहीं देती। थोड़े से खर्चे में लाखों की कमाई और साथ में पशुओं के लिए बढ़िया चारा यही वजह है कि कलाई को काला सोना कहा जाता है। अगर किसान इसे व्यावसायिक रूप से अपनाते हैं तो उनकी आर्थिक स्थिति और मजबूत हो सकती है।
Disclaimer: यह लेख केवल जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी प्रकार की खेती शुरू करने से पहले कृषि विशेषज्ञ या स्थानीय कृषि विभाग से सलाह लेना आवश्यक है।