पीली स्टिक से सरसों की फसल बचाने का देसी तरीका, बिना खर्च लाही कीट से छुटकारा, सरसों की खेती में मुनाफा बढ़ाने का आसान उपाय
सरसों की खेती करने वाले किसान इस समय एक बड़ी परेशानी से गुजर रहे हैं जब खेत में फूल आते ही लाही कीट फसल पर हमला कर देता है। यह कीट फूल और कोमल भागों को नुकसान पहुंचाता है जिससे पैदावार और मुनाफा दोनों पर असर पड़ता है। कई किसान कीटनाशक का सहारा लेते हैं लेकिन उसका असर कुछ ही दिनों तक रहता है और खर्च भी बढ़ जाता है। अच्छी बात यह है कि बिना किसी खर्च के एक घरेलू और आसान तरीका अपनाकर इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।
सरसों में लाही कीट क्यों बनता है बड़ी समस्या
बिना खर्च के पीली स्टिक विधि क्यों है असरदार
कीटनाशक के छिड़काव से कीट कुछ समय के लिए ही दूर रहते हैं लेकिन पीली स्टिक विधि पूरे सीजन काम करती है। यह तरीका पूरी तरह सुरक्षित है और इसमें किसी रसायन का उपयोग नहीं होता। सबसे बड़ी बात यह है कि इसे किसान अपने घर में पड़े पुराने सामान से ही तैयार कर सकते हैं।
पीली स्टिक कैसे बनाएं और कैसे लगाएं
इस विधि में किसी भी पीले रंग की प्लास्टिक शीट टिन या डब्बे का उपयोग किया जा सकता है। अगर पीला सामान न हो तो किसी पुराने टुकड़े को पीले रंग से रंग लें। इसके बाद उस पर ग्रीस मोबिल या कोई भी चिपचिपा पदार्थ लगा दें। अब इसे एक डंडे की मदद से फसल से एक हाथ ऊपर खेत में लगा दें। लाही कीट पीले रंग से आकर्षित होकर उसी स्टिक पर आकर चिपक जाता है और आपकी फसल सुरक्षित रहती है। यह स्टिक कटाई तक प्रभावी रहती है।
बाजार से भी मिलती है तैयार पीली स्टिक
अगर किसान खुद स्टिक नहीं बनाना चाहते तो बाजार में भी तैयार पीली स्टिक आसानी से मिल जाती है। इन्हें खेत में सही दूरी पर लगाने से पूरे खेत में लाही का प्रकोप काफी हद तक खत्म हो जाता है। यह तरीका जैविक खेती के लिए भी बहुत उपयोगी माना जाता है।
सरसों की खेती क्यों मानी जाती है मुनाफे की फसल
सरसों की खेती कम लागत में अच्छी कमाई देने वाली फसल मानी जाती है। अगर फसल की सही देखभाल हो और कीटों से बचाव समय पर किया जाए तो उत्पादन बढ़ जाता
है। बाजार में सरसों के अच्छे दाम मिलते हैं जिससे किसान को सीधा फायदा होता है। इसलिए पीली स्टिक जैसे आसान उपाय अपनाकर किसान अपनी मेहनत और फसल दोनों को सुरक्षित रख सकते हैं।
Disclaimer: यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। खेती से जुड़े किसी भी प्रयोग से पहले स्थानीय कृषि विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
