'वंदे मातरम्' भारत के भविष्य का भी सपना, कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के दबाव में इसके टुकड़े किये: मोदी
नयी दिल्ली- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि वंदे मातरम् को गाते हुए आजादी के दीवाने फांसी के फंदे पर झूल जाते थे और इस गीत की गूंज ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी लेकिन कांग्रेस तुष्टीकरण के लिए मुस्लिम लीग के समक्ष झुक गयी और इस गीत के टुकड़े कर दिये।
वंदे मातरम् की रचना के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में लोक सभा में विशेष चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में राष्ट्र भक्ति का मंत्र बना यह प्रेरक गीत स्वतंत्र भारत के भविष्य का भी सपना है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जो वंदे मातरम 1905 में महात्मा गांधी को नेशनल एंथम के रूप में दिखता था, जो देश प्रेमियों को बल प्रदान करता था, उसके खिलाफ मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने 15 अक्टूबर 1937 को लखनऊ में नारा बुलंद कर दिया । कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू ने जिन्ना के बयानों का तगड़ा जवाब देने के बजाय पांच दिन बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस को चिठ्ठी लिख कर जिन्ना की भावना का समर्थन करते हुए लिखा कि 'वंदे मातरम् की आनंद मठ वाली पृष्ठभूमि मुसलमानों को इरिटेट कर (चिढ़ा) सकती है।"
श्री मोदी ने कहा, "नेहरू जी कहते हैं, मैंने वंदे मातरम गीत का बैकग्राउंड पढ़ा है।" नेहरू जी फिर लिखते हैं, "मुझे लगता है कि यह जो बैकग्राउंड है, इससे मुस्लिम भड़केंगे।" उसके बाद कांग्रेस ने 26 अक्टूबर को कांग्रेस कार्यसमिति में इस गीत के उपयोग की समीक्षा करने का बयान दे दिया था। देश भर में इसके विरोध के बावजूद कांग्रेस ने उस बैठक में वंदे मातरम् के साथ समझौता कर लिया। पार्टी के फैसले के बाद इस गीत के टुकड़े कर दिए।
प्रधानमंत्री ने कहा, 'उस फैसले को चोला यह पहनाया गया कि यह तो सामाजिक सद्भाव का काम है। लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेक दिए और मुस्लिम लीग के दबाव में किया और कांग्रेस का यह तुष्टीकरण की राजनीति को साधने का एक तरीका था।"
उन्होंने कहा, ' तुष्टीकरण की राजनीति के दबाव में कांग्रेस वंदे मातरम के बंटवारे के लिए झुकी, इसलिए कांग्रेस को एक दिन भारत के बंटवारे के लिए झुकना पड़ा।... आज भी कांग्रेस और उसके साथी और जिन-जिन के नाम के साथ कांग्रेस जुड़ा हुआ है सब, वंदे मातरम पर विवाद खड़ा करने की कोशिश करते हैं।"
श्री मोदी ने कहा कि वंदे मातरम् की यात्रा की शुरुआत बंकिम चंद्र जी ने 1875 में की थी और यह गीत ऐसे समय लिखा गया था, जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज सल्तनत बौखलाई हुई थी। उनके 1882 में लिखे उपन्यास आनंद मठ में इसका समावेश किया गया।
श्री मोदी ने कहा, " आजाद भारत के सपने को सींचा था वंदे भारत की भावना ने, समृद्ध भारत के सपने को सींचेगी वंदे मातरम् की भावना, उन्हीं भावनाओं को लेकर के हमें आगे चलना है। हमें आत्मनिर्भर भारत बनाना है और 2047 में देश विकसित भारत बन कर रहेगा।"
श्री मोदी ने कहा, " जिसने वंदे मातरम जैसी पवित्र भावना को भी विवादों में घसीट दिया। मैं समझता हूं कि आज जब हम वंदे मातरम के 150 वर्ष का पर्व बना रहे हैं, यह चर्चा कर रहे हैं, तो हमें उन परिस्थितियों को भी हमारी नई पीढ़ियां को जरूर बताना हमारा दायित्व है, जिसकी वजह से वंदे मातरम के साथ विश्वासघात किया गया।" उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् सिर्फ गीत या भाव गीत नहीं बल्कि जो हमारे लिए प्रेरणा है और हमें राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों के लिए झकझोरने वाला स्वर है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ' हम आत्मनिर्भर भारत का सपना लेकर के चल रहे हैं, उसको पूरा करना है। वंदे मातरम हमारी प्रेरणा है।" श्री मोदी ने कहा , " हम स्वदेशी आंदोलन को ताकत देना चाहते हैं, (आज) समय बदला होगा, रूप बदले होंगे, लेकिन पूज्य गांधी ने जो भाव व्यक्त किया था, उस भाव की ताकत आज भी हमें मौजूद है और वंदे मातरम् हमें (उससे) जोड़ता है।"
प्रधानमंत्री ने कहा "वंदे मातरम् देश की प्राचीन पृष्ठभूमि और सांस्कृतिक परंपरा का आधुनिक अवतार है। बंकिमदा ने जब वंदे मातरम् की रचना की थी तो यह गीत स्वाभाविक रूप से आजादी की लड़ाई का स्वर बना और पूरे देश के आजादी के योद्धाओं को मुग्ध करने का मंत्र बन गया। वंदे मातरम् हजारों वर्ष की सांस्कृतिक ऊर्जा थी, इसमें आजादी का जज्बा भी था और आजाद भारत की दृष्टि भी थी। इस गीत के हर शब्द देशवासियों को हौसला देने वाले थे। उसमें संदेश दिया गया था कि लड़ाई जमीन हथियाने की नहीं और सिर्फ आजादी पाने की नहीं है बल्कि यह देश की समृद्धि का भी संकल्प है। इस गीत का सिर्फ जन जन से जुड़ाव नहीं रहा है बल्कि यह गीत हमारी आजादी की लंबी गाथा की अभिव्यक्ति भी है।"
श्री मोदी ने कहा, "वंदे मातरम् जनजीवन की धारा प्रवाह यात्रा का नाम है और इस गीत के सामने आने के बाद से अंग्रेज समझ गये थे कि अब भारत में रहना आसान नहीं है इसलिए उन्होंने देश को टुकड़ों में बांटने की चाल चली और 'बांटो तथा राज करो' की नीति को चुना। बंगाल के विभाजन को इसकी प्रयोगशाला बनाया गया। बंगाल की बौद्धिक शक्ति तब पूरे देश को ताकत देती थी। बंगाल पूरे देश को प्रभावित करता था। अंग्रेजों का मानना था कि अगर बंगाल को तोड़ दिया तो देश में आसानी से राज किया जा सकता है और 1905 में उन्होंने बंगाल विभाजन का पाप किया तो वंदे मातरम् बंगाल की एकता के लिए चट्टान की तरह खड़ा रहा। गली गली में इस गीत की गूंज सुनाई दे रही थी। वंदे मातरम् देश के लिए चट्टान और अंग्रेजों के लिए संकट बन गया था।"
उन्होंने कहा कि अंग्रेज समझ गये थे कि बंगाल से निकला वंदे मातरम् का भाव पूरे देश में जिस भाव के साथ फैल गया है उससे देश में आजादी के वेग को रोकना आसान नहीं है इसलिए उन्होंने वंदे मातरम् बोलने पर भी सजा का प्रावधान कर दिया। इस गीत को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया। इसके बावजूद वंदे मातरम् गीत गाते हुए प्रभात फेरियां बंगाल की गली गली में निकलती थी और बंगाल की गलियों से निकली यह आवाज पूरे देश की आवाज बन गई थी। छोटे छोटे बच्चों को वंदे मातरम् गाने पर उनके साथ जुल्म किया गया। बच्चों ने वंदे मातरम् मंत्र को अपनी ताकत सिद्ध कर दिया था। जांबाज वंदे मातरम् जय घोष के साथ फांसी पर चढ़ गये।
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