ज्ञान, धर्म और परोपकार: जीवन को सार्थक बनाने का मार्ग
मानव जीवन में संतोष और परोपकार का महत्व हमेशा से उजागर रहा है। हमारे पिछले जन्मों के कर्मों के आधार पर जो धन और संसाधन हमें प्राप्त हुए हैं, उनमें संतोष करना आवश्यक है। जीवन की भौतिक आवश्यकताओं में संतोष रखना ही परमात्मा की व्यवस्था के अनुसार है।
जो व्यक्ति केवल भोग और विलासिता को जीवन का लक्ष्य मानता है, वह असफल रहता है। मनुष्य का परम कर्तव्य है कि वह अपने शुभ कार्यों से जीवन को सुखमय बनाए और अपनी पवित्र कमाई का यथोचित भाग परहित में लगाता रहे। यदि हम केवल अपने सुख की कामना करें और समाज को भूल जाएँ तो यह स्वार्थ और भोग में बदल जाता है।
पवित्र मन, पवित्र कर्म और पवित्र विचार किसी भी व्यक्ति को श्रेष्ठ बना सकते हैं। केवल ज्ञान प्राप्त करना पर्याप्त नहीं है, उसके विवेकपूर्ण प्रयोग की भी आवश्यकता है। इतिहास साक्षी है कि रावण के पास अपार ज्ञान था, लेकिन विनम्रता, दया, क्षमा और सौहार्द की कमी के कारण वह राक्षस कहलाया।
इस प्रकार संतोष, सेवा, ज्ञान और विवेक ही मानव जीवन को सार्थक और समाज के लिए उपयोगी बनाते हैं।
