दुख के दिनों में शक्ति और सच्चे मित्र की पहचान

दुख आता है तो कुछ अनुभव भी देकर जाता है। मनुष्य की परमात्मा से निकटता दुख के दिनों में अधिक बढ जाती है। वह चिंतनशील हो जाता है। दुख के दिनों में सभी मित्र सम्बन्धी निकट होते है, परन्तु दुख के दिनों में अपने भी दूर भागने लगते हैं। दुख का एक अच्छा पक्ष भी है कि उसे आदमी की परख हो जाती है। सच्चे मित्र की पहचान दुख के समय ही होती है।
तभी ज्ञान होता है कि सच्चा मित्र केवल वह जगत का पालनहार प्रभु ही तो है, जिसे हमें सुख के दिनों में अपने अज्ञान के कारण भूले रहते हैं। विपरीत समय में भी आप कमजोर न पड़े नहीं तो कमजोर करने वाली शक्तियां आपको घेर लगेगी। अच्छा सेनापति वह होता है जो अपनी सेना का मनोबल बनाये रखता है, उनकी हिम्मत बढाये रखता है। यदि सेनापति का ही मनोबल कमजोर पड़ गया तो सेना की भी हिम्मत टूट जायेगी।
याद रखिए आप भी अपने घर के सेनापति है। दुख के दिन आये तो घरवालों का मनोबल टूटने न दें। उन्हें कभी यह अहसास न होने दे कि आप दुखी हैं, परेशान हैं। दुनिया के सामने भी कभी अपने कष्टों का रोना मत रोना दुनिया हंसेगी। यही सच्चाई है। रोना है तो परमपिता परमात्मा के आगे रोना जो सबके दुख दूर करता है।