धर्म मंदिरों में नहीं, मनुष्य के आचरण में बसता है
धर्म कहां होता है? मंदिर में नहीं, प्रतिमा में नहीं, तीर्थों में भी नहीं। धर्म कोई साकार वस्तु नहीं है जिसे दिखाया जा सके या छुआ जा सके। धर्म मनुष्य की आत्मा में बसता है, उसके आचरण में प्रकट होता है। जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता है, यथोचित व्यवहार करता है, और किसी के प्रति द्वेष या वैमनस्य नहीं रखता — वही सच्चा धर्मात्मा है।
यदि कोई इसके विपरीत आचरण करता है तो वह धार्मिक नहीं हो सकता। धर्म वास्तव में सबका एक ही है, परंतु मनुष्य ने अपनी सुविधा के अनुसार अलग-अलग मार्ग, परिभाषाएँ और आचरण निर्धारित कर लिए हैं। ईश्वर को भी हमने देश और काल के अनुसार भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा, जबकि सृष्टि का रचियता तो एक ही है।
धर्म क्या है, इसका उत्तर सरल है — जो संसार के सभी प्राणियों के लिए समान हो, वही धर्म है। वह धर्म है जिसे धारण करने से आत्मा में पवित्रता आए, विचारों में शुद्धि हो, एक-दूसरे के प्रति सद्भावना और सबके कल्याण की भावना उत्पन्न हो।
जिस व्यक्ति के मन में राग-द्वेष न हो, जो पुरुषार्थ और नेक नियति से कमाए, उसका त्यागपूर्वक भोग करे और जो अपने से अतिरिक्त को सुपात्र को दान करे — वही सच्चा धार्मिक है। यही सबका धर्म है, यही मानवता का मूल है।
