व्यक्तियों में सक्रियता अलग-अलग रूपों में देखने को मिलती है। कुछ लोग कार्यों की ओर पूरी तरह प्रवृत्त नहीं होते क्योंकि वे बाधाओं और व्यवधानों के बारे में अधिक सोचते हैं। ऐसे व्यक्ति कार्य शुरू करने का साहस नहीं जुटा पाते और उनका हौंसला ही कमज़ोर रहता है।
वहीं कुछ लोग बाधाओं से लड़ते हुए कार्य को पूर्णता की ओर ले जाते हैं। ये व्यक्ति कार्य करते समय कम बोलते हैं और सफलता प्राप्त होने पर अहंकार नहीं करते। ऐसे लोग विवेकशील, धैर्यशील और प्रभु भक्ति से परिपूर्ण माने जाते हैं।
आध्यात्मिक दृष्टि से विवेक को आत्मा की आवाज कहा गया है। विवेक में ही ईश्वर की शक्ति और सार्थकता निहित होती है। इसे विकसित करने के लिए स्वाध्याय, चिंतन, सत्संगति, सात्विक आहार और आत्मबल आवश्यक हैं। हमें वह सब त्याग देना चाहिए जिससे आत्मा की आवाज या विवेक कमजोर हो।
इस प्रकार, वास्तविक सफलता और आध्यात्मिक प्रगति के लिए व्यक्ति का धैर्य, विवेक और कार्य के प्रति निष्ठा ही सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैं।
