(सुधाकर आशावादी-विनायक फीचर्स)
ज़िंदा रहने के लिए भोजन हवा पानी की जरुरत पड़ती है और इस जरुरत को पूरा करने के लिए एक अदद आदमी में कोई विशिष्ट कौशल होना ही चाहिए, ताकि वह अपने हुनर यानी कौशल के बल पर अपनी आजीविका चला सके। यूँ तो जिसके पास कोई हुनर नही होता, उदर पूर्ति उसकी भी होती ही है। कहावत है कि प्राणी भूखा उठता अवश्य है, मगर भगवान उसे भूखा नहीं सुलाता। फिर भी हाथ का कारीगर यदि हुनरमंद हो, तो कभी भूखा नहीं मरता। हाथ का कारीगर यदि भूखा मरने लगे या बेरोजगारी का रोना रोने लगे, तो अवश्य ही उसके हुनरमंद होने पर सवालिया निशान खड़े होंगे।
आज के दौर में हुनरमंद होना ही आजीविका की गारंटी होता है, मगर हुनरमंद होने के लिए सहनशीलता, धैर्य और सीखने की प्रबल इच्छा का होना अनिवार्य होता है। संसार में ऐसे कम ही लोग होते हैं, जो हरफन मौला होते हैं। किसी भी काम को आँखों ही आँखों में सीख लेते हैं तथा हुनरमंद हो जाते हैं। कुछ ऐसे होते हैं, जो पढ़ लिखकर किताबी ज्ञान के आधार पर अपने आपको निश्चित शब्दकोष तक ही सीमित कर लेते हैं। जीवन से जुड़े जरुरी कामों से उन्हें कोई सरोकार नहीं होता।
मसलन न उनमें अपने कपड़ों पर प्रेस करने का हुनर आता है , न कपड़े धोने या सुखाने का, न अपनी हजामत बनाने का हुनर आता है और न ही किचिन में जाकर अपनी भूख मिटाने के लिए तरकारी या रोटी बनाने का। न घर को साफ सुथरा बनाने का हुनर आता है और न ही करीने से घर सजाने का। बस उन्हें कोई एक कप चाय स्वादिष्ट नाश्ते के साथ दे दे। उसे समय पर धुले धुलाए प्रेस किये हुए परिधान मिल जाएं, समय से डायनिंग टेबल पर लंच और डिनर मिलता रहे। एक अदद आदमी को और चाहिए भी क्या, रोटी, कपड़ा और मकान के सिवा। यहाँ एक कहावत और भी है, जिसे जीवन में नकारना सरल नहीं है, वह है अपना हाथ जगन्नाथ। जिसे अपना कार्य अपने आप करना आ गया, समझो उसे जीने का सलीका आ गया। कभी कभी ऐसी परिस्थिति आ ही जाती है, जब अपने हाथों चाय बनाकर पीना मज़बूरी हो जाता है।
अपने एक मित्र हैं। बरसों से औरों पर निर्भर रहते थे। रसोइया चटपटे मसालों से बना जायकेदार भोजन उपलब्ध कराता था। सेवकों की पूरी श्रृंखला थी, जो हाथ बांधे मित्र महोदय के सम्मुख खड़ी रहती थी, कि जैसे ही मित्र महोदय के मुख से कोई स्वर फूटे, वैसे ही उनकी वाणी को आज्ञा मानकर अपना सेवक धर्म निभाए। इसलिए मित्र महोदय कभी समाज और सामाजिक व्यवस्थाओं से परिचित नहीं हो सके। कहीं घूमने का मन करता तो घर के पोर्च में ही लग्जरी कारें आकर खड़ी हो जाती। विदेश यात्रा वायुयानों से करते और देशी लम्बी यात्राएं रेल के वातानुकूलित शयनयानों में। न उन्हें आम आदमी की जीवन शैली से कोई सरोकार रहा और न ही उनकी समस्याओं से। एक बार उन्हें जननायक बनने का जुनून सवार हुआ। उन्हें बताया गया, कि जननायक कहलाने के लिए आम आदमी की तरह रहने और जीने का प्रदर्शन करना पड़ता है।
आम आदमी से घुलने मिलने और उसे समझने का प्रयत्न करना पड़ता है। सड़क पर आम आदमी की तरह घूमना पड़ता है। फिर क्या था, मित्र महोदय ने दूरदृष्टि पक्का इरादा की तर्ज पर आम आदमी बनने का हुनर सीखना शुरू किया। सबसे पहले रेलवे स्टेशन पहुंचे, लाल कमीज और लाल गमछा धारी कुली भाइयों के बीच बैठकर चाय पी। उनसे दुनिया का बोझ उठाने का हुनर सीखा। दो खाली सूटकेस सर पर रखकर फोटो सेशन कराया तथा कुली की भूमिका निभाई। उसके बाद भी उन्हें सुकून नहीं मिला। वह स्कूटर ठीक करने वाले मैकेनिक की दुकान पर पहुंचे। उसके हाथ से प्लग पाना लेकर स्कूटर का प्लग ठीक करना सीखा, ताकि खुद को स्कूटर मैकेनिक कह सके। फिर टेलरिंग शॉप पर गए, वहां जाकर कपड़े सीने का दृश्य फिल्माया। इसी प्रकार कारपेंटर से कुर्सी बनाने का हुनर सीखा, फेवीकॉल से कुर्सी के जोड़ों को मजबूत करने का अभ्यास किया। एक सज्जन के घर जाकर मांसाहारी व्यंजन पकाना सीखा।
फिर किसी खेत में पहुँच गए और पूछने लगे कि गन्ने की खेती कैसे होती है ? गन्ने में गुड़ और चीनी कितनी है उसका पता कैसे लगाया जाता है। खेत में गन्ने की फसल बोना सीखा, फोटो खिंचवाई। वह हुनरमंद हुए या नहीं, यह तो वही जानें, लेकिन इतना अवश्य हुआ कि उन्हें आम आदमी होने या समझने की व्याख्या करने की समझ आ गई। अब और क्या लिखूं , इतना ही लिखना पर्याप्त है कि जिसे अपने जरुरी काम करने का हुनर आ गया, समझिये कि जीने का सलीका आ गया, मगर दूसरी कहावत यह भी है कि "जिसका काम उसी को साजे और कोई करे तो अनाड़ी बाजे" या "अनाड़ी का खेलना, खेल का सत्यानाश ।" *(विनायक फीचर्स)*