सेल्फ हार्म डिसऑर्डर में बढ़त! अभिभावकों की लापरवाही नौनिहालों के लिए बन रही खतरा- Self Harm Disorder

Self Harm Disorder: बच्चों के गुस्से और जिद को सामान्य व्यवहार माना जाता रहा है, लेकिन हाल के दिनों में यह प्रवृत्ति गंभीर रूप लेने लगी है। जिला अस्पताल के मानसिक स्वास्थ्य विभाग की ओपीडी में हर सप्ताह 15 से अधिक बच्चे ऐसे आते हैं जो गुस्सा होने या अपनी जिद पूरी न होने पर खुद को चोट पहुंचाने लगते हैं। चिकित्सकों के अनुसार इसे सेल्फ हार्म डिसऑर्डर कहा जाता है। अगर समय रहते इस पर ध्यान न दिया गया, तो यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।
डॉ. अभिनव शेखर का मानना - शुरुआती संकेत न करें नजरअंदाज
सेल्फ हार्म के लक्षण - शारीरिक और मानसिक संकेत
डॉ. शेखर ने बताया कि इस डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चे खुद को नोंचना, थप्पड़ मारना, दीवार या किसी वस्तु से सिर टकराना, हाथ काटना या खरोंचना जैसी हरकतें करते हैं। यह केवल शारीरिक नुकसान नहीं बल्कि मानसिक असंतुलन का संकेत भी है। अगर समय पर चिकित्सकीय परामर्श और काउंसिलिंग नहीं की गई, तो इसका गहरा असर बच्चों के जीवन पर पड़ सकता है।
घर और माहौल - समस्या की जड़
विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों में सेल्फ हार्म की प्रवृत्ति अक्सर घर के माहौल से जुड़ी होती है। माता-पिता के बीच तनाव, अत्यधिक पढ़ाई का दबाव, डिजिटल उपकरणों की लत और बच्चों को पर्याप्त समय न देना, ये कारण बच्चों को असुरक्षित और अकेला महसूस कराते हैं। परिणामस्वरूप वे अपने गुस्से और असंतोष को खुद पर ही निकालने लगते हैं।
उपचार और बचाव - अभिभावकों की भूमिका अहम
डॉ. शेखर ने सुझाव दिया कि अभिभावकों को बच्चों के साथ संवाद बढ़ाने की जरूरत है। जब बच्चा गुस्से में खुद को नुकसान पहुंचाए, तो उसे डांटने या मारने की बजाय शांत होकर उसकी समस्या समझें। आवश्यकता पड़ने पर मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक से परामर्श लेना चाहिए। बच्चों के लिए सकारात्मक माहौल, पर्याप्त समय और प्यार देना सबसे प्रभावी उपचार है।