डिजिटल आत्मनिर्भर भारत: स्वदेशी सॉफ्टवेयर सेवाएं बनें राष्ट्रीय रणनीतिक संपत्ति

भारत ने बीते एक दशक में डिजिटल क्षेत्र में जो परिवर्तनकारी उपलब्धियाँ हासिल की हैं, वे किसी क्रांति से कम नहीं हैं। आधार, एकीकृत भुगतान अंतरफलक और खुला नेटवर्क डिजिटल वाणिज्य जैसी पहलों ने यह सिद्ध किया है कि यदि तकनीक का प्रयोग जनसेवा, पारदर्शिता और विश्वास के साथ किया जाए, तो वह केवल सुविधा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता का आधार बन सकती है। इन पहलों ने भारत को यह सामर्थ्य दिया है कि वह अपने नागरिकों और उद्योग जगत के लिए एक सुरक्षित, विश्वसनीय और सर्वसुलभ डिजिटल ढाँचा तैयार कर सके।

आज विश्व की दिशा यह दर्शा रही है कि आँकड़ों और डिजिटल मंचों पर नियंत्रण ही भविष्य की वास्तविक शक्ति है। बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ इस क्षेत्र में अग्रणी हैं, और यह स्वाभाविक भी है क्योंकि उन्होंने तकनीक में अग्रणी भूमिका निभाई है। परंतु इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि प्रत्येक देश अपने आँकड़ों, डिजिटल संरचना और उपयोगकर्ता गोपनीयता पर पर्याप्त नियंत्रण रखे। यूरोपीय देशों ने इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए गोपनीयता संरक्षण और डिजिटल बाज़ार व्यवस्था जैसे कड़े कानून बनाए हैं। भारत जैसे विशाल और विविधता भरे देश के लिए यह और भी महत्वपूर्ण है कि हम अपने डिजिटल ढाँचे का स्वामित्व और संचालन अपने ही हाथों में बनाए रखें।
भारत की एक अग्रणी स्वदेशी सॉफ्टवेयर सेवा कंपनी ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि बिना किसी विदेशी निवेश के भी विश्वस्तरीय तकनीकी समाधान तैयार किए जा सकते हैं। इसके उत्पाद आज 180 से अधिक देशों में उपयोग किए जा रहे हैं। इसके सर्वर भारत या तटस्थ देशों में स्थित हैं, और इसका आँकड़ा भारतीय कानूनों के अंतर्गत सुरक्षित रखा गया है। यह छोटे उद्यमों से लेकर सरकारी संस्थानों तक, सबको सेवाएँ प्रदान कर रही है। इसका मूल सिद्धांत है — “लाभ के साथ स्वतंत्रता”, अर्थात व्यावसायिक सफलता के साथ आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान का संतुलन।
ऐसे उदाहरण बताते हैं कि डिजिटल क्षेत्र में भारत अब केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्माता की भूमिका निभाने की दिशा में अग्रसर है। इसलिए यह समय है कि सरकार इस दिशा में एक समग्र नीति बनाए, जिसके अंतर्गत “डिजिटल सार्वभौमिकता अभियान” जैसी पहल शुरू की जा सके। इस अभियान का उद्देश्य होगा — भारत में विकसित स्वदेशी सॉफ्टवेयर सेवा मंचों को पहचानना, संरक्षण देना और प्रोत्साहन प्रदान करना।
जहाँ-जहाँ संभव हो, सरकारी खरीद में भारतीय सॉफ्टवेयर उत्पादों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। रक्षा, सार्वजनिक उपक्रमों और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में स्वदेशी मेघगणना और डाक-संप्रेषण प्रणाली को अपनाना राष्ट्रीय आँकड़ा-सुरक्षा की दिशा में एक ठोस कदम होगा। आँकड़ा सुरक्षा केवल तकनीकी नियमों से नहीं, बल्कि मंच के स्वामित्व से भी सुनिश्चित होती है।
इसके साथ ही भारत को अपनी डिजिटल कूटनीति के अंतर्गत अपने सॉफ्टवेयर सेवा मॉडल को अफ्रीका, दक्षिण–पूर्व एशिया और वैश्विक दक्षिण के देशों में भी साझा करना चाहिए। जिस प्रकार एकीकृत भुगतान अंतरफलक ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की विशिष्ट पहचान बनाई है, उसी प्रकार भारतीय सॉफ्टवेयर सेवा मॉडल भी विश्व के उभरते देशों के लिए प्रेरक उदाहरण बन सकता है।
भारत आज एक सॉफ्टवेयर शक्ति के रूप में पहचाना जाता है, परंतु हमारी वास्तविक स्वतंत्रता तभी होगी जब सॉफ्टवेयर पर हमारा उपयोग ही नहीं, बल्कि स्वामित्व भी हो। जैसे एकीकृत भुगतान प्रणाली ने भुगतान के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का प्रतीक बनकर विदेशी प्रणालियों पर निर्भरता को घटाया, वैसे ही ईमेल, मेघगणना, ग्राहक प्रबंधन और व्यापार उपकरणों के क्षेत्र में भी स्वदेशी सॉफ्टवेयर सेवा मंचों को भारत की डिजिटल नीति का महत्वपूर्ण स्तंभ बनाया जाना चाहिए।
डिजिटल आत्मनिर्भरता केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की रणनीतिक सुरक्षा है। यही वह मार्ग है जो भारत को न केवल डिजिटल रूप से सशक्त बनाएगा, बल्कि उसे विश्व डिजिटल व्यवस्था में एक स्वाभिमानी नेतृत्व प्रदान करेगा — और यही होगी “डिजिटल आज़ादी” का सच्चा अर्थ।
अतुल जैन, राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिल भारतीय श्वेतांबर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेंस