नवंबर में करें बोड़ा (बोरा) की खेती, तीन कट्ठा ज़मीन से कमाएं ₹15,000 मुनाफ़ा, जानें तरीका और फायदे
अगर आप भी कम ज़मीन में ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने की सोच रहे हैं तो आज की यह जानकारी आपके बहुत काम आने वाली है। आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसी फसल की जो कम समय में बंपर उत्पादन देती है और किसानों को शानदार मुनाफ़ा कराती है। इस फसल का नाम है बोड़ा या बोरा की खेती, जो आज बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तक किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
कैसे होती है बोड़ा की खेती
किसान नरेश जी के अनुसार बोड़ा की खेती में खर्च बहुत कम आता है। तीन कट्ठा ज़मीन में खेती करने पर करीब ₹4000 का खर्च आता है जिसमें खाद, बीज और अन्य चीज़ें शामिल होती हैं। लेकिन अगर कोई किसान मचान विधि से खेती करता है तो उत्पादन और भी बढ़िया मिलता है। मचान विधि में लकड़ी या बांस के सहारे पौधों को ऊपर चढ़ाया जाता है जिससे फल की गुणवत्ता बेहतर होती है और तुड़ाई करना भी आसान रहता है।
नरेश जी बताते हैं कि उन्होंने जून महीने में बोड़ा की रोपाई की थी। इस फसल की बुवाई अप्रैल से जून-जुलाई तक की जा सकती है और इसकी सबसे अच्छी वैराइटी ईस्ट-वेस्ट बोड़ा मानी जाती है। यह फसल लगभग 30 दिन में फल देना शुरू कर देती है और करीब तीन महीने तक लगातार उत्पादन देती रहती है। हर 15 दिन में खाद डालना इस फसल के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है।
सेहत और बाजार दोनों में फायदेमंद
बोड़ा की खेती किसानों के लिए इसलिए खास है क्योंकि इसकी सब्ज़ी स्वादिष्ट और पौष्टिक दोनों होती है। इसमें विटामिन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फॉस्फोरस, फाइबर, कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसे खाने से पाचन शक्ति मजबूत होती है, कब्ज़ और अपच से राहत मिलती है और हड्डियाँ मज़बूत बनती हैं।
यही कारण है कि स्थानीय बाजारों में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। बोड़ा की तुड़ाई होते ही यह मंडी में धड़ाधड़ बिक जाती है और किसान को तुरंत नकद लाभ मिल जाता है। कम समय, कम लागत और अधिक मुनाफ़े की वजह से यह फसल आज छोटे किसानों के लिए एक शानदार विकल्प बन चुकी है।
अगर आप भी कोई ऐसी फसल ढूंढ रहे हैं जो जल्दी तैयार हो और आपको सीधा मुनाफ़ा दे तो बोड़ा की खेती आपके लिए बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी किसानों के अनुभव और कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर आधारित है। खेती करने से पहले अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार कृषि विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।
