धान की फसल में कंडुआ रोग से बचाव के उपाय, किसान समय पर करें पहचान और रोकथाम

धान की खेती करने वाले किसान भाई इस समय अपनी फसल की सबसे अहम अवस्था से गुजर रहे हैं क्योंकि अक्टूबर से नवंबर के बीच धान की बालियां निकलने लगती हैं। ऐसे में किसानों की मेहनत पर कई तरह के कीट और रोग हमला कर देते हैं जिनसे पूरी फसल बर्बाद हो सकती है। धान की बालियों में लगने वाला सबसे खतरनाक रोग है कंडुआ रोग, जिसे हल्दी रोग या भुंड रोग के नाम से भी जाना जा
कैसे होता है कंडुआ रोग
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार यह रोग फफूंद जनित होता है और हवा के माध्यम से तेजी से फैलता है। जिन खेतों में नमी अधिक रहती है और जहां किसान भाई जरूरत से ज्यादा यूरिया का प्रयोग करते हैं वहां यह रोग तेजी से फैलता है। यह रोग खासतौर पर अधिक उपज देने वाली किस्मों में देखा जाता है। धान की बालियों के निकलने पर इसके लक्षण सबसे पहले दिखाई देते हैं और अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो पूरी फसल को नुकसान पहुंच सकता है।
बचाव और उपचार के तरीके
कृषि विशेषज्ञ शिवशंकर वर्मा बताते हैं कि इस रोग से बचाव करने के लिए सबसे जरूरी है धान के बीज का सही उपचार। किसान भाई नर्सरी डालने से पहले बीजों को नमक के घोल में उपचारित करें और उन्हें अच्छे से सुखा लें। इसके बाद प्रति किलोग्राम बीज में दो ग्राम कार्बेन्डाजिम-50 डब्ल्यूपी या दो ग्राम थीरम का उपयोग करें।
धान की फसल में खाद का इस्तेमाल भी बहुत सोच-समझकर करना चाहिए। उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करें और यूरिया का अत्यधिक उपयोग बिल्कुल न करें। सबसे जरूरी है कि जैसे ही रोग के शुरुआती लक्षण दिखाई दें वैसे ही कृषि विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार उचित कीटनाशक का छिड़काव करें ताकि रोग फैलने से पहले ही नियंत्रित हो सके।
किसानों की सावधानी ही बचाव
दोस्तों यह सच है कि धान की फसल किसान भाइयों के लिए जीवन रेखा जैसी होती है। ऐसे में समय पर रोग की पहचान और उसका सही प्रबंधन ही किसानों को नुकसान से बचा सकता है। अगर किसान भाई शुरुआत से ही बीज उपचार, संतुलित खाद और समय-समय पर निगरानी करते रहें तो कंडुआ रोग से फसल को बचाया जा सकता है और बेहतर पैदावार पाई जा सकती है।
Disclaimer: यह आर्टिकल कृषि संबंधी सामान्य जानकारी पर आधारित है। धान की फसल में रोग प्रबंधन करने से पहले अपने क्षेत्र के कृषि विशेषज्ञ या कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह अवश्य लें।