Garlic cultivation:अक्टूबर से नवंबर में करें बुवाई, कम खर्च में पाएं भरपूर उत्पादन और ऊंचे दामों पर लाखों की कमाई का सुनहरा अवसर

आज हम आपको एक ऐसी फसल के बारे में बताने जा रहे हैं जो हर घर की रसोई में इस्तेमाल होती है और किसानों को जबरदस्त कमाई का मौका देती है। जी हां हम बात कर रहे हैं लहसुन की खेती की। स्वाद और औषधीय गुणों से भरपूर यह मसाला बाजार में हमेशा डिमांड में रहता है और सही समय पर इसकी बुवाई करने से किसान भाइयों को लाखों रुपये तक का फायदा हो सकता है।
खेत और मिट्टी की तैयारी
लहसुन की अच्छी उपज के लिए दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। खेत में पानी का ठहराव बिल्कुल नहीं होना चाहिए वरना कंद सड़ने का खतरा रहता है। बुवाई से पहले खेत की 3-4 बार गहरी जुताई कर लें और उसमें सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट अच्छी तरह मिला दें। इससे मिट्टी उपजाऊ बनेगी और पौधों को जरूरी पोषण मिलेगा।
बुवाई की विधि और बीज का चयन
लहसुन की खेती कलियों यानी पोतियों से की जाती है। बीज के लिए हमेशा स्वस्थ मोटी और रोगमुक्त कलियां चुनें। क्यारी की चौड़ाई 1 से 1.2 मीटर और लंबाई जमीन की स्थिति के अनुसार रखी जा सकती है। क्यारियों के बीच 30 से 40 सेंटीमीटर की नालियां छोड़ना जरूरी है ताकि सिंचाई और जल निकासी आसानी से हो सके।
प्रत्येक कली को 5 से 6 सेंटीमीटर गहराई पर मिट्टी में दबाएं। कतार से कतार की दूरी 15 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 7 से 8 सेंटीमीटर रखें। बोते समय कलियों का नुकीला हिस्सा हमेशा ऊपर की ओर होना चाहिए। बिजाई के बाद हल्की सिंचाई जरूर करें और उसके बाद हर 10 से 12 दिन पर पानी देते रहें।
देखभाल और उत्पादन
फसल को खरपतवार से बचाने के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना जरूरी है। जैविक खाद और उचित मात्रा में रासायनिक उर्वरक डालने से उत्पादन काफी बढ़ जाता है। सही देखभाल और समय पर सिंचाई करने से लहसुन की उपज बेहतरीन मिलती है और किसान भाइयों को बाजार में इसकी शानदार कीमत भी मिलती है।
दोस्तों लहसुन की खेती एक ऐसी फसल है जो स्वाद के साथ सेहत भी देती है और किसानों की जेब को भी भर देती है। अक्टूबर से नवंबर तक इसकी बुवाई करने का समय सबसे अच्छा होता है और अगर सही तरीके से इसकी खेती की जाए तो यह फसल किसानों को मालामाल कर सकती है।
Disclaimer: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी कृषि विशेषज्ञों और उपलब्ध स्रोतों पर आधारित है। खेती करने से पहले स्थानीय कृषि अधिकारी या विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।