गेहूँ की श्रीराम सुपर 111 किस्म: कम समय में ज्यादा उत्पादन, मुलायम रोटियाँ और किसानों को लाखों का मुनाफा

आज हम आपको गेहूँ की एक ऐसी किस्म के बारे में बताने जा रहे हैं जो गुणवत्ता में बेहतरीन है और जिसकी बाजार में जबरदस्त डिमांड है। इस गेहूँ से निकला आटा बड़ी-बड़ी कंपनियों में सप्लाई होता है और मार्केट में भी खूब बिकता है। यही वजह है कि अगर आप इस सीजन में गेहूँ की खेती करने का सोच रहे हैं तो श्रीराम सुपर 111 आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है।
श्रीराम सुपर 111 की बुवाई का सही समय और मिट्टी
गेहूँ की श्रीराम सुपर 111 किस्म की बुवाई अक्टूबर से नवंबर तक की जानी चाहिए। इसकी खेती के लिए उपजाऊ और अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उत्तम मानी जाती है। खेत की तैयारी के समय एक-दो बार जोताई करके उसमें अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद मिला देनी चाहिए। इससे मिट्टी में पर्याप्त पोषक तत्व आ जाते हैं और फसल का उत्पादन शानदार होता है।
बीज और सिंचाई की व्यवस्था
इस किस्म की बुवाई करते समय बीज का चुनाव हमेशा स्वस्थ और उच्च गुणवत्ता वाला करना चाहिए। इससे अंकुरण अच्छा होता है और पौधे मजबूत बनते हैं। इस किस्म की फसल को लगभग 3 से 5 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। अगर मौसम सामान्य रहता है तो इतना पानी पर्याप्त होता है और फसल अच्छे से तैयार हो जाती है।
फसल तैयार होने का समय और उत्पादन क्षमता
गेहूँ की श्रीराम सुपर 111 किस्म की सबसे बड़ी खूबी इसकी जल्दी पकने की क्षमता है। यह किस्म बुवाई के लगभग 105 से 120 दिनों के भीतर ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यानी किसान भाइयों को जल्दी उत्पादन मिल जाता है और वे समय पर इसे बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
उत्पादन क्षमता की बात करें तो एक एकड़ में लगभग 28 क्विंटल गेहूँ आसानी से मिल जाता है। यही वजह है कि इसकी खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा मानी जाती है। इसका आटा ज्यादा पसंद किया जाता है और बड़ी कंपनियां भी इसे खरीदती हैं जिससे मार्केट में इसकी मांग बनी रहती है।
दोस्तों अगर आप गेहूँ की खेती से अच्छी कमाई करना चाहते हैं और एक भरोसेमंद किस्म की तलाश में हैं तो श्रीराम सुपर 111 आपके लिए एकदम सही विकल्प है। इसकी पैदावार अच्छी होती है, रोटियाँ मुलायम बनती हैं और बाजार में दाम भी अच्छे मिलते हैं। यह किस्म किसानों को निश्चित रूप से लाभ दिलाने वाली है।
Disclaimer: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी कृषि विशेषज्ञों और उपलब्ध स्रोतों पर आधारित है। खेती करने से पहले स्थानीय कृषि अधिकारी या विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।