बुद्धिजीवियों का नरसंहार पाकिस्तान का नहीं, बल्कि एक 'पड़ोसी देश' का काम था :बीएनपी नेता
ढाका- बंगलादेश में भारत विरोधी बयानबाजी में एक और उछाल आया है। बीएनपी के एक नेता ने दावा किया है कि 1971 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली बुद्धिजीवियों की सामूहिक हत्या पाकिस्तानी सेना ने नहीं, बल्कि "एक पड़ोसी देश" की सेना ने की थी। यह अप्रत्यक्ष इशारा भारत की ओर था।
ये टिप्पणियां बंगलादेश के विजय दिवस, 16 दिसंबर से एक दिन पहले आई हैं, जो पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण का प्रतीक है और भारत में भी विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
टीपू ने जमात को पश्चिमी पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों में ऐतिहासिक रूप से मिलीभगत के आरोप से बरी करते हुए कहा कि हत्याओं के लिए किसी एक विशेष राजनीतिक समूह को दोषी ठहराना "इतिहास का विकृतिकरण" है और उन्होंने जमात से अंतरिम सरकार से "इतिहास को सही करने" की मांग करने का आग्रह किया।
उनकी ये टिप्पणियां जमात नेता गुलाम पोरवार द्वारा कार्यक्रम के दौरान किए गए इसी तरह के दावों के बाद आईं, जिन्होंने दावा किया कि बुद्धिजीवियों की हत्या के पीछे भारत का हाथ था, जो "भारतीय सेना और उसकी खुफिया एजेंसी द्वारा रची गई एक सुनियोजित साजिश" का हिस्सा था और यहां तक कि उन्होंने झूठा दावा भी किया कि भारतीय सेना ने 8 दिसंबर तक ढाका पर कब्जा कर लिया था।
