किश्तवाड़-डोडा में सेना का महा-अभियान: पाकिस्तानी आतंकवादियों को खदेड़ने के लिए पैरा कमांडोज उतरे, सर्च ऑपरेशन तेज
नयी दिल्ली। सेना ने हड्डियों को जमा देने वाली सर्दी की 40 दिन की 'चिल्लई कलां' अवधि में बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों को चुनौती देते हुए पाकिस्तानी आतंकवादियों को खदेड़ने के लिए जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ और डोडा जिलों में आतंकवाद-रोधी अभियानों को तेज कर दिया है। रक्षा सूत्रों के अनुसार सेना ने जम्मू क्षेत्र में करीब 30 से 35 पाकिस्तानी आतंकवादियों के सक्रिय होने के मद्देनजर ऊंचाई वाले और बर्फ से ढके क्षेत्रों में तैनाती तथा निगरानी को और बढा दिया है।
'चिल्लई कलां' कश्मीर में सर्दियों के 40 दिनों के सबसे कठोर और भीषण ठंड के दौर को कहते हैं जो हर वर्ष 21 दिसंबर से शुरू होकर 30 या 31 जनवरी तक चलता है। इस दौरान तापमान बहुत गिर जाता है, पानी जमने लगता है और भारी बर्फबारी होती है।
में आमतौर पर भारी बर्फबारी और संचार मार्गों के बाधित होने के कारण आतंकवादी गतिविधियों में कमी देखी जाती है। हालांकि इस बार सेना ने सर्दियों के इन भीषण ठंड वाले दिनों के लिए विशेष रणनीति बनाई है। सेना ने आतंकियों को खराब मौसम का लाभ उठाने से रोकने के लिए दूरदराज के पर्वतीय इलाकों में अस्थायी ठिकाने और निगरानी चौकियां स्थापित की गई हैं।
शून्य से नीचे तापमान और दुर्गम भूभाग में सेना की टुकड़ियां लगातार पहाड़ी चोटियों, घाटियों और वन क्षेत्रों में गश्त कर रही हैं। ये अभियान जम्मू-कश्मीर पुलिस, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल, विशेष अभियान दल, नागरिक प्रशासन, वन रक्षक और ग्राम रक्षा गार्डों के साथ समन्वित प्रयास के तहत चलाए जा रहे हैं, जिससे खुफिया सूचनाओं का त्वरित आदान-प्रदान और प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित हो सके।
खुफिया आकलन के अनुसार जम्मू क्षेत्र में अभी लगभग 30 से 35 पाकिस्तानी आतंकवादी सक्रिय हैं। निरंतर बढती सुरक्षा और स्थानीय लोगों से मिलने वाले समर्थन में कमी के चलते ये कथित तौर पर अस्थायी शीतकालीन ठिकानों की तलाश में ऊंचे, निर्जन पर्वतीय इलाकों की ओर चले गए हैं। गांवों से भोजन और शरण के लिए दबाव बनाने के आतंकवादियों के प्रयास सतर्कता बढ़ने और 'ओवरग्राउंड नेटवर्क' के कमजोर पड़ने के कारण विफल रहे हैं।
सुरक्षा बल शेष बचे आतंकवादी ठिकानों को समाप्त करने और उनकी गतिविधियों को दुर्गम क्षेत्रों तक सीमित रखने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। घाटियों, मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों और ऊंची पर्वत चोटियों में एक साथ चल रहे अभियानों का उद्देश्य आतंकियों की रसद आपूर्ति को बाधित करना और सुरक्षित आवाजाही के मार्गों को बंद करना है। बर्फीले युद्ध और उच्च पर्वतीय परिस्थितियों में प्रशिक्षित विशेष शीतकालीन युद्ध इकाइयों को तैनात किया गया है। ये ड्रोन, थर्मल इमेजिंग उपकरण, ग्राउंड सेंसर और निगरानी रडार जैसी आधुनिक तकनीकों की मदद ले रहे हैं जिससे प्रतिकूल मौसम के बावजूद चौबीसों घंटे निगरानी और त्वरित प्रतिक्रिया संभव हो रही है।
अधिकारियों के अनुसार ये अभियान निगरानी–त्वरित कार्रवाई–पुनः निगरानी के सिद्धांत पर आधारित हैं, ताकि लगातार दबाव बनाए रखा जा सके और आतंकियों को फिर से संगठित होने का अवसर न मिले। आक्रामक अभियानों के साथ-साथ स्थानीय समुदायों और ग्राम रक्षा गार्डों के साथ सहयोग भी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जैसे-जैसे क्षेत्र में सर्दी भीषण रुप ले रही है सुरक्षा बलों ने अपनी रणनीति पर अमल शुरू कर दिया और आतंकवादी प्रतिकूल मौसम का फायदा नहीं उठा सकेंगे क्योंकि सेना के आतंकवाद-रोधी अभियान पूरी तेजी के साथ जारी रहेंगे।
