लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बारबाडोस में ऑस्ट्रेलियाई सीनेट अध्यक्ष से की मुलाकात, रणनीतिक साझेदारी पर चर्चा

ब्रिजटाउन। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने बारबाडोस में आयोजित 68वें कॉमनवेल्थ संसदीय सम्मेलन (सीपीसी) के दौरान ऑस्ट्रेलियाई सीनेट की अध्यक्ष सू लाइन्स से मुलाकात की। इस दौरान दोनों नेताओं ने भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच बढ़ती रणनीतिक साझेदारी पर चर्चा की, जो वर्ष 2020 के बाद से लगातार मजबूत हुई है।

डिजिटल शासन में भारत के नेतृत्व पर ज़ोर देते हुए, बिरला ने कहा, "भारत संसदीय नवाचार में सबसे आगे है, पारदर्शिता, दक्षता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए 'डिजिटल संसद' और एआई-संचालित बहुभाषी उपकरणों जैसी पहलों को लागू कर रहा है।" उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई प्रतिनिधिमंडल को जनवरी 2026 में नई दिल्ली में होने वाले कॉमनवेल्थ स्पीकर सम्मेलन (सीएसपीओसी) में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। एक अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रम में, बिरला ने जॉर्जटाउन में सीपीए सम्मेलन में जाम्बिया की राष्ट्रीय सभा की अध्यक्ष नेली मुट्टी से मुलाकात की। उन्होंने ज़ाम्बिया की लोकतांत्रिक यात्रा और वहां की संसदीय संस्थाओं की भूमिका की सराहना की। दोनों नेताओं ने संसदीय प्रतिनिधिमंडलों के आदान-प्रदान और सर्वोत्तम संसदीय प्रथाओं को साझा करने पर चर्चा की। इसके अलावा, बिड़ला ने बारबाडोस की हाउस ऑफ असेंबली के अध्यक्ष आर्थर होल्डर से भी द्विपक्षीय वार्ता की।
दोनों नेताओं ने भारत और बारबाडोस के गहरे सांस्कृतिक संबंधों, कॉमनवेल्थ मूल्यों और क्रिकेट प्रेम पर आधारित संस्कृति और लोगों के बीच मजबूत रिश्ते को रेखांकित किया। बिड़ला ने बारबाडोस द्वारा भारतीय नागरिकों को वीजा-मुक्त प्रवेश देने के निर्णय की सराहना की और कहा कि कैरेबियाई देश में भारतीय समुदाय की सक्रिय भूमिका दोनों देशों को और करीब लाती है। उन्होंने बारबाडोस की संसद का भी दौरा किया, जहां उन्होंने 1966 में भारत द्वारा उपहार में दी गई नक्काशीदार सागौन की लकड़ी की स्पीकर चेयर देखी। उन्होंने कहा, “यह हमारी दीर्घकालिक मित्रता का प्रतीक है।”
इस दौरान शिक्षा, संस्कृति और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर भी चर्चा हुई। इससे पहले गुरुवार को, बिरला ने सम्मेलन में एक कार्यशाला की अध्यक्षता भी की, जहां उन्होंने विधायी प्रणालियों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के नैतिक और समावेशी उपयोग पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि तकनीक का उपयोग समाज में डिजिटल अंतर को कम करने और संसदों को नागरिकों के प्रति अधिक केंद्रित बनाने के लिए होना चाहिए।