तनातनी के बीच टाटा ट्रस्ट बोर्ड मीटिंग खत्म! 1,700 करोड़ परोपकार फंड के इस्तेमाल को लेकर गहराया विवाद

Tata Trusts: टाटा ट्रस्ट के बोर्ड की बहुप्रतीक्षित बैठक 10 अक्तूबर को मुंबई के प्रतिष्ठित बाम्बे हाउस मुख्यालय में आयोजित हुई, जो दोपहर दो बजे तक चली। बैठक में कुछ ट्रस्टी व्यक्तिगत रूप से मौजूद रहे, जबकि अन्य ने वीडियो कॉल से जुड़कर भागीदारी की। सूत्रों के अनुसार, बैठक में ट्रस्ट प्रशासन के संचालन, फंडिंग योजनाओं और नियमों के अनुपालन की समीक्षा हुई। हालांकि, ट्रस्टियों की नई नियुक्ति और उनके कार्यकाल को बढ़ाने पर चर्चा नहीं हुई। इससे संकेत मिलता है कि सारा ध्यान आर्थिक और प्रबंधन रणनीतियों पर ही केंद्रित रहा।
1,700 करोड़ परोपकार फंड बना टकराव का केंद्र

रतन टाटा की पुण्यतिथि से पहले बढ़ा विवाद
भारत के सबसे बड़े औद्योगिक घरानों में शुमार टाटा ग्रुप इन दिनों आंतरिक विवादों के कारण सुर्खियों में है। यह विवाद टाटा ट्रस्ट और टाटा संस के बीच चल रहे सत्ता संघर्ष से जुड़ा है, जो रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि से ठीक पहले खुलकर सामने आया है। ऐसे समय में जब देश की अर्थव्यवस्था को स्थिरता की जरूरत है, टाटा ग्रुप की स्थिरता काफी अहम है।
दो धड़ों में बंटा टाटा ट्रस्ट का बोर्ड
विवाद की शुरुआत बोर्ड नियुक्तियों और संचालन नीतियों से हुई। रिपोर्ट्स के अनुसार, टाटा ट्रस्ट दो धड़ों में बंट चुका है, एक धड़ा नोएल टाटा (दिवंगत रतन टाटा के सौतेले भाई) के साथ है, जबकि दूसरा धड़ा मेहली मिस्त्री (पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री के चचेरे भाई) के पक्ष में है, जिनका संबंध शापूरजी पल्लोनीजी परिवार से है। 11 सितंबर को हुई पिछली बोर्ड बैठक में पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह को पुनर्नियुक्त करने का प्रस्ताव आया, जिसे कुछ ट्रस्टियों ने खारिज कर दिया। इसके बाद मेहली मिस्त्री के नाम का प्रस्ताव रखा गया, लेकिन नोएल टाटा और वीनू श्रीनिवासन ने इसका विरोध कर दिया, जिससे विवाद और गहरा गया।
सरकार की नजर में टाटा समूह का विवाद
विवाद बढ़ने पर मुद्दा इतना गंभीर हो गया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने नोएल टाटा और टाटा संस के चेयरपर्सन एन चंद्रशेखरन के साथ उच्च स्तरीय बैठक की। विशेषज्ञों के मुताबिक, टाटा ट्रस्ट के पास टाटा संस में लगभग 66% हिस्सेदारी है, जिससे वह होल्डिंग कंपनी को नियंत्रित करता है। अगर विवाद और बढ़ता है, तो इसका असर सिर्फ स्टॉक मार्केट और निवेशकों पर नहीं, बल्कि सीधे भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। टाटा ग्रुप की सूचीबद्ध कंपनियों में ₹25 लाख करोड़ से अधिक का निवेश है और यह देश की GDP में लगभग 4% का योगदान देता है।