यूपी में जातीय रैलियों पर इलाहाबाद HC सख़्त, जवाब न देने पर प्रमुख सचिव को किया तलब

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने प्रदेश में जातीय रैलियों पर राज्य सरकार द्वारा स्पष्ट जवाब न देने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की है। न्यायालय ने संबंधित प्रमुख सचिव को निर्देश दिया है कि वह तीन दिन के भीतर शपथ पत्र दाखिल करें, अन्यथा उन्हें अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना होगा। मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को निर्धारित की गई है।

कोर्ट ने जताई नाराजगी
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने अधिवक्ता मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया।
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सरकारी जवाब: सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार के अधिवक्ता ने बताया कि 21 सितंबर 2025 को एक शासनादेश जारी कर प्रदेश में राजनीतिक उद्देश्य से होने वाली जातीय रैलियों पर रोक लगा दी गई है।
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न्यायालय का सवाल: इस पर खंडपीठ ने नाराजगी जताते हुए सवाल किया कि जब रोक लगा दी गई है, तो शपथ पत्र दाखिल करने में क्या समस्या है?
जातीय रैलियों पर प्रतिबंध की मांग
यह जनहित याचिका प्रदेश में जातीय रैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग करती है।
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पूर्व आदेश: न्यायालय ने इस याचिका पर सुनवाई के बाद 11 जुलाई 2013 को ही राजनीतिक दलों द्वारा जाति आधारित रैलियों पर अंतरिम रोक लगा दी थी।
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कोर्ट की टिप्पणी: कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जातीय व्यवस्था समाज को बांटती है और भेदभाव पैदा करती है। साथ ही, जाति आधारित रैलियों की अनुमति देना संविधान की भावना, मौलिक अधिकारों और दायित्वों का उल्लंघन है।
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चुनाव आयोग का रुख: पिछली सुनवाई में चुनाव आयोग भी कह चुका है कि आदर्श आचार संहिता में जातीय रैलियों को पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया है।
न्यायालय ने पूर्व में सरकार से यह भी जवाब मांगा था कि उसके पास इन रैलियों पर कार्रवाई करने की क्या शक्ति है, जिसके अनुपालन में अब तक कोई संतोषजनक जवाब दाखिल नहीं किया गया है।
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