बिहार विधानसभा चुनाव: NDA ने लगाई 'जीत की डबल सेंचुरी', 202 सीटों पर बढ़त; विपक्ष का सूपड़ा साफ
पटना- बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमाल कर दिया है और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 202 सीटों के जादुई आंकड़े तक पहुंच गया , वहीं राहुल-तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया है ।
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे उस कहानी को बयान कर रहे हैं, जिसमे प्रधानमंत्री श्री मोदी और मुख्यमंत्री श्री कुमार किसी परिकथा के नायक की तरह उभरे हैं। दूसरी तरफ इस चुनाव में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी प्रसाद यादव जनता के दिलों में जगह नही बना पाए। महागठबंधन इस चुनाव में महज 35 सीटों पर सिमट गया है।
इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सबको चौंका दिया है। यहाँ तक कि खुद एनडीए के नेता भी इतनी प्रचंड जीत का अनुमान नही कर पा रहे थे। चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने भी एनडीए कार्यकर्ताओं को 160 से 165 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया था।लेकिन एनडीए का 202 सीटें जीतना किसी चमत्कार जैसा प्रतीत हो रहा है। चुनाव आयोग द्वारा जारी की गई ताज़ा जानकारी के अनुसार, एनडीए ने 202 सीटें जीत ली हैं। ये जीती हुई सीटें 2010 के विधानसभा चुनावों में एनडीए की रिकॉर्ड जीत से सिर्फ 04 कम है। वर्ष 2010 में एनडीए ने 206 सीटें अपने नाम की थीं। इस बार भाजपा (89), जनता दल यूनाइटेड (जदयू) (85), लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) (19), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा(हम) (05) रिपीट 05 और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) को (04) सीटें मिली हैं।
उल्लेखनीय है कि एनडीए ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 125 सीटें जीती थीं और उसके मुकाबले इस बार 77 सीटों के फायदे में है । 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए द्वारा जीती गई 125 सीटों में से, भाजपा ने 74 , जदयू ने 43, हम और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने 4-4 सीटें जीती थीं।
इस बार महागठबंधन केवल 35 सीटें जीत पाया है , जो 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव की तुलना में 75 कम हैं। इस बार राजद को (25), कांग्रेस को (06), भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी लेनिनवादी (भाकपा माले) को (02) और इंडियन इन्क्लूसिव पार्टी (आईआईपी) को (01) सीट मिली है। वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में महागठबंधन ने 110 सीटें जीती थीं, जिनमें राजद ने 75, कांग्रेस ने 19, भाकपा (माले) ने 12, जबकि भाकपा और माकपा ने दो-दो सीटें जीती थीं। असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने पांच सीटों पर कब्जा कर सीमांचल के मुसलमानों में अपनी पैठ को दर्शाया है।
बहुजन समाज पार्टी के एक उम्मीदवार ने भी जीत दर्ज की है। रामगढ़ विधानसभा सीट से बसपा के उम्मीदवार सतीश कुमार सिंह यादव ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार अशोक कुमार सिंह को बेहद करीबी मुकाबले में 30 मतों के अंतर से पराजित किया।लालू यादव के एक पुत्र तेजस्वी यादव को किसी तरह राघोपुर में जीत हासिल हो गई, लेकिन उनके बड़े पुत्र तेजप्रताप यादव महुआ से हार गए। महागठबंधन में उप मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी का इस चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया। उसके सभी 13 उम्मीदवारों हार गये। भाकपा को भी इस बार कोई सीट नहीं मिली।
जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर के लिए आज का दिन बेहद खराब रहा। उनकी पार्टी ने युवाओं के पलायन, शिक्षा और रोज़गार जैसे मुद्दों को उठाने का निरंतर प्रयास किया लेकिन उनकी सभाओं में जनता आई जनता की भीड़ के बावजूद बिहार विधानसभा में उनकी पार्टी शून्य के स्कोर पर आउट हो गयी।
इस चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन के नेता राहुल और तेजस्वी ने अगस्त महीने में "मतदाता अधिकार यात्रा" निकाली थी, जिसमें मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का आरोप लगाया गया था। दोनों नेताओं ने बिहार में चल रहे एसआईआर को चुनाव आयोग की मिलीभगत से एनडीए के पक्ष में "वोट चोरी" की कोशिश करार दिया था, लेकिन नतीजे कह रहे हैं कि लोगों ने उनके दावे को सिरे से ख़ारिज कर दिया।
श्री गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उपर छ्ठ पूजा के दौरान कृत्रिम तालब में डूबकी मारने के प्रयास का आरोप लगाते हुए उन्हें ढोंगी कहा था, लेकिन उनका यह प्रयास भी लोगों को नही भाया। बाद में श्री मोदी ने श्री गाँधी के इस आरोप को उलट दिया और इसे बिहार के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का प्रयास बताया था।
इस सम्बंध में कहा गया कि महागठबंधन में सीट शेयरिंग को ले लेकर लम्बे असमंजस और राजद नेता तेजस्वी प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित करने में देरी भी हार की वजह बनी। एनडीए ने प्रचारित किया कि जो सीटों की बंदरबांट में लगे हैं, वो प्रदेश के लोगों का क्या भला करेंगे।
दूसरी ओर, प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री श्री कुमार ने एकजुटता दिखाई और सार्वजनिक मंचों से एक दुसरे की तारीफ करते रहे।
एनडीए की कई कल्याणकारी और विकास योजनाओं की शुरुआत ने भी उन्हें मदद पहुंचाई, जिससे खेल बदलता चला गया। मुख्यमंत्री श्री कुमार ने "महिला रोज़गार योजना" शुरू की और 1.40 करोड़ महिलाओं के खातों में रोजगार शुरू करने के लिए सीधे 10,000 रुपये जमा किए, जिसके बाद महिला मतदाताओं का रुझान एनडीए की तरफ झुक गया। इस चुनाव ने महिला मतदाताओं ने 71 प्रतिशत से ज्यादा मतदान कर बिहार में अब तक का सारा रिकॉर्ड तोड़ दिया।
इस बार का चुनाव एनडीए ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एकजुट होकर लड़ा और आश्चर्य की बात है कि बीस वर्षों से सता में काबिज श्री कुमार के खिलाफ कोई ‘विरुद्ध लहर’ भी नही दिखी। उलटे जदयू ने पिछले चुनाव में जीती 43 सीटों को बढ़ा कर 85 के तक पहुंचा दिया है। कुछ विशेषज्ञ ये भी अटकलें लगा रहें है कि क्या भाजपा अपने घटक दलों के सहयोग से अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार प्रस्तावित करेगी, लेकिन इसकी सम्भावना कम ही है, क्यों कि चुनाव एनडीए के दोनों घटक दलों ने सौहार्द के साथ लड़ा है और दूसरी तरफ केंद्र में मोदी सरकार चलने के लिए भाजपा को लोकसभा में जदयू के 12 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता है।
