“डिग्री नहीं, संचार कौशल दिलाता है नौकरी” — डॉ. बीरबल झा का युवाओं को संदेश
पटना। श्री अरविंद महिला महाविद्यालय में आयोजित एक प्रेरक संगोष्ठी में देश के जाने-माने अंग्रेज़ी भाषा विशेषज्ञ, लेखक और ब्रिटिश लिंगुआ के संस्थापक डॉ. बीरबल झा ने छात्राओं को करियर और रोजगार-योग्यता कौशल की बारीकियां सिखाईं। यह कार्यक्रम उनके राष्ट्रीय अभियान “राइज़ एंड स्पीक अप फॉर इंडिया” का हिस्सा था, जिसकी शुरुआत उन्होंने बिहार से […]
पटना। श्री अरविंद महिला महाविद्यालय में आयोजित एक प्रेरक संगोष्ठी में देश के जाने-माने अंग्रेज़ी भाषा विशेषज्ञ, लेखक और ब्रिटिश लिंगुआ के संस्थापक डॉ. बीरबल झा ने छात्राओं को करियर और रोजगार-योग्यता कौशल की बारीकियां सिखाईं। यह कार्यक्रम उनके राष्ट्रीय अभियान “राइज़ एंड स्पीक अप फॉर इंडिया” का हिस्सा था, जिसकी शुरुआत उन्होंने बिहार से की है।
मुख्य अतिथि के तौर पर डॉ. झा ने कहा, “डिग्री आपको शॉर्टलिस्ट करा सकती है, लेकिन सिलेक्शन दिलाने का काम आपका कम्युनिकेशन करता है।” उनके इस कथन पर सभागार तालियों से गूंज उठा।
डॉ. झा ने बताया कि आज के प्रतिस्पर्धी दौर में केवल शैक्षणिक डिग्रियां काफी नहीं हैं। सफलता के लिए संचार, टीमवर्क, अनुकूलनशीलता, समस्या समाधान और नैतिकता जैसे सॉफ्ट स्किल्स भी जरूरी हैं। उन्होंने कहा, “डिग्रियां पढ़ा-लिखा बनाती हैं, लेकिन कौशल आपको रोजगार योग्य बनाते हैं।”
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उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि “संचार केवल भाषा बोलना नहीं, बल्कि वह शक्ति है जो आपकी पहचान और अवसरों के द्वार खोलती है।” उन्होंने छात्राओं से कहा, “जब आप अपनी आवाज़ उठाती हैं, तो आप अपनी आज़ादी पाती हैं।”
कार्यक्रम के दौरान डॉ. झा ने यह भी समझाया कि अंग्रेज़ी सीखने का उद्देश्य पाश्चात्य संस्कृति अपनाना नहीं, बल्कि रोजगार के अवसरों को अधिकतम करना है। उन्होंने बताया कि 1993 से वे अंग्रेज़ी शिक्षण के क्षेत्र में क्रांति ला रहे हैं, और लाखों युवाओं को प्रशिक्षण दे चुके हैं।
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उन्होंने नैतिकता को रोजगार-योग्यता की आत्मा बताते हुए कहा, “प्रतिभा नौकरी दिला सकती है, लेकिन केवल आपके मूल्य ही आपको टिकाऊ और सम्मानित बनाए रखते हैं।”
कार्यक्रम के अंत में छात्राओं ने यह संकल्प लिया कि वे अपने संचार कौशल, नैतिक मूल्यों और रोजगार योग्य क्षमताओं को विकसित करेंगी, और राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाएंगी।
डॉ. झा ने अपने मार्गदर्शक वाक्य से कार्यक्रम का समापन किया: “जीविका के लिए भाषा, पहचान के लिए संस्कृति और समाज के लिए नैतिकता।”
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