झारखंड के पूर्व सीएम चंपाई सोरेन का टाटा स्टील पर बड़ा हमला: “इस बार लीज का नवीनीकरण नहीं होने देंगे”

जमशेदपुर। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने टाटा स्टील और राज्य सरकार पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा है कि इस बार टाटा कंपनी का लीज नवीनीकरण नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि टाटा कंपनी ने हमेशा आदिवासियों से जमीन ली है, लेकिन उनके हितों की रक्षा नहीं की।
पेसा अधिनियम लागू करने में सरकार नाकाम
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्तमान सरकार आदिवासियों के हितों के प्रति गंभीर नहीं है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पेसा अधिनियम की समीक्षा कर ग्राम सभाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का प्रयास किया था, लेकिन सरकार इसे लागू नहीं कर रही।
नगड़ी हल जोतने की घटना का जिक्र
चंपाई सोरेन ने नगड़ी हल जोतने की घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार ने इसे रोकने के लिए कड़े कदम उठाए, लेकिन आदिवासी समाज ने अंततः अपनी जीत दर्ज की। उन्होंने कहा कि तिलका मांझी, सिदो-कान्हू, बिरसा मुंडा जैसे वीरों ने जल-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ी थी और अब हमें उसी परंपरा को आगे बढ़ाना होगा।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि दान पत्र के जरिए सीएनटी-एसपीटी एक्ट को दरकिनार कर आदिवासियों की जमीनें छीनी जा रही हैं। 22 दिसंबर को भोगनाडीह में होने वाली परंपरागत बैठक में इन जमीनों को वापस लेने का निर्णय लिया जाएगा।
झारखंड और ओडिशा की जमीन पर सवाल
चंपाई ने कहा कि झारखंड और ओडिशा में उद्योगपतियों ने हजारों हेक्टेयर जमीन ले ली, लेकिन आदिवासी समाज को इसका कोई लाभ नहीं मिला। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो लोग आदिवासी जीवनशैली छोड़ चुके हैं या धर्मांतरण कर चुके हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
आरक्षण और शिक्षा पर चंपाई का बयान
उन्होंने शिक्षा और आस्था के मुद्दों पर भी सरकार को कटघरे में खड़ा किया। कहा कि उनके शासनकाल में सरकारी स्कूलों में स्थानीय भाषाओं में पढ़ाई शुरू हुई थी, लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया गया। साथ ही आदिवासी आस्था के महत्वपूर्ण केंद्र मरांग बुरू को विवादों में घसीटा गया।
निशा उरांव ने पेसा पर रखे विचार
कार्यक्रम में आईटी विभाग की पूर्व अधिकारी और पंचायत राज निदेशक निशा उरांव ने कहा कि हाईकोर्ट ने पेसा कानून को तुरंत लागू करने का आदेश दिया है। उन्होंने भी साफ कहा कि जो लोग आदिवासी जीवनशैली छोड़ चुके हैं, वे आदिवासी नहीं माने जाएंगे।
कार्यक्रम में मौजूद थे
आदिवासी सांवता सुशार अखाड़ा द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में प्रो. ज्योतिंद्र बेसरा, सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता सुभाशीष सोरेन समेत कई बुद्धिजीवियों ने अपने विचार रखे। झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा से हजारों लोग इस कार्यक्रम में शामिल हुए।