कांग्रेस का समीकरण बदला: 48 साल बाद अहीरवाल नेता को कमान, लेकिन हुड्डा का दबदबा अब भी बरकरार

Haryana News: हरियाणा कांग्रेस ने इस बार प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव कर राजनीतिक हलचल मचा दी है। लंबे समय से चल रहे दलित और जाट समीकरण को तोड़ते हुए पार्टी ने अहीरवाल (ओबीसी) वर्ग के नेता पूर्व मंत्री राव नरेंद्र सिंह को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधायक दल का नेता चुना गया है। यह फैसला इस बात का साफ संकेत देता है कि लगातार तीन विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद हुड्डा का दबदबा पार्टी में बरकरार है।
20 साल से दलित नेता ही बनते रहे अध्यक्ष
क्यों चुने गए राव नरेंद्र सिंह?
पार्टी हाईकमान के पास प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए तीन नाम थे—राव नरेंद्र सिंह, चिरंजीव राव, और राव दान सिंह। लेकिन कांग्रेस ने कई कारणों से राव नरेंद्र सिंह पर भरोसा जताया।
राव दान सिंह भूपेंद्र हुड्डा के करीबी हैं और उनके परिवार पर ईडी की जांच चल रही है।
चिरंजीव राव, पूर्व मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव के बेटे हैं और अजय यादव समय-समय पर हाईकमान को असहज स्थिति में डालते रहे हैं।
ऐसे में राव नरेंद्र सिंह सबसे बेहतर विकल्प माने गए। वे न केवल अहीरवाल बेल्ट का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि किसी गुटबाजी से भी जुड़े नहीं हैं। यही कारण है कि राहुल गांधी के सामाजिक संतुलन वाले फार्मूले में वे पूरी तरह फिट बैठते हैं।
अहीरवाल बेल्ट में कांग्रेस की कमजोर पकड़
हरियाणा की अहीरवाल बेल्ट (यादव बहुल क्षेत्र) कांग्रेस के लिए हमेशा कमजोर रही है। 2024 के विधानसभा चुनाव में पार्टी यहां की 11 में से 10 सीटें हार गई थी। ऐसे में राव नरेंद्र सिंह की नियुक्ति कांग्रेस के लिए इस क्षेत्र में पकड़ मजबूत करने की रणनीति मानी जा रही है। यह फैसला न केवल जातीय समीकरण बल्कि 2029 की राजनीति की दिशा तय कर सकता है।
हुड्डा का दबदबा अब भी कायम
हरियाणा कांग्रेस के पांच सांसद और 38 विधायकों में से चार सांसद और 32 विधायक हुड्डा के समर्थक हैं। इतने बड़े जनसमर्थन को नजरअंदाज करना हाईकमान के लिए संभव नहीं है। यही वजह है कि उन्हें विधायक दल का नेता बनाए रखा गया है। इसके अलावा जाट बिरादरी—जो राज्य का लगभग 21 फीसदी वोट बैंक है—पूरी तरह हुड्डा के पीछे खड़ी है।
क्यों नहीं हटा सकती कांग्रेस हुड्डा को?
भाजपा को चुनौती देने के लिए कांग्रेस के पास आज भी हुड्डा ही सबसे बड़ा चेहरा हैं। जाट वोट बैंक का भरोसा उन्हीं पर है। इसके अलावा हरियाणा कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेता जैसे भजनलाल, बंसीलाल और राव इंद्रजीत पहले ही भाजपा का दामन थाम चुके हैं। ऐसे में हुड्डा ही अकेले ऐसे पुराने कांग्रेसी हैं, जिन पर अभी भी वोटरों और संगठन का भरोसा कायम है।
संसाधन और मजबूती का बड़ा फैक्टर
तीन बार सत्ता से बाहर रहने के बावजूद हुड्डा कांग्रेस में टिके रहे हैं। वे न केवल संगठन को आर्थिक और राजनीतिक संसाधन उपलब्ध कराते हैं, बल्कि गुटबाजी में भी उनकी पकड़ सबसे मजबूत है। यही कारण है कि पार्टी हाईकमान उनके प्रभाव को दरकिनार करने का जोखिम नहीं उठा सकता।