नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा है कि सात साल की सजा पूरी करने के बावजूद एक व्यक्ति को आठ साल से अधिक समय तक जेल में क्यों रखा गया। कोर्ट ने इस मामले को "गंभीर प्रशासनिक चूक" बताया है और राज्य सरकार को दो हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
यह मामला तब सामने आया जब सुप्रीम कोर्ट की पीठ को जानकारी दी गई कि एक व्यक्ति, जिसे दुष्कर्म के मामले में दोषी ठहराया गया था, अपनी निर्धारित सजा पूरी करने के बाद भी जेल में है। यह मामला मध्य प्रदेश के सागर जिले के खुरई क्षेत्र का है, जहां एक ट्रायल कोर्ट ने दोषी को आजीवन कारावास और दो हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।
बाद में दोषी ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में अपील की, जहां उसकी सजा को कम करते हुए सात साल के कठोर कारावास में बदल दिया गया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दोषी की अपील आंशिक रूप से स्वीकार की गई थी। इसके बावजूद उसे जेल से रिहाई का आदेश 6 जून 2025 को ही मिला।
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सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन शामिल थे, ने टिप्पणी की कि यह जानना बेहद जरूरी है कि इस तरह की गंभीर लापरवाही कैसे हुई। कोर्ट ने कहा कि दोषी ने अपनी निर्धारित सजा पूरी कर ली थी, फिर भी उसे क्यों नहीं छोड़ा गया, इसका पूरा स्पष्टीकरण राज्य सरकार को देना होगा।
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मामले की अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 8 सितंबर को होगी। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि अगर संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो राज्य सरकार के अधिकारियों की जवाबदेही तय की जा सकती है।
यह मामला देश की जेल प्रणाली और प्रशासनिक निगरानी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है, खासकर उन मामलों में जहां सजा पूरी हो जाने के बावजूद दोषियों को अवैध रूप से हिरासत में रखा जाता है।