7 सितम्बर को पितृ पक्ष का शुभारंभ और 21 को समापन होगा, 7 को चंद्र ग्रहण लग रहा है तो 21 को सूर्य ग्रहण लगेगा

122 वर्ष बाद पितृपक्ष का शुभारंभ व विसर्जन ग्रहण पर होगा। इसके पहले वर्ष 1903 में पितृपक्ष में दो ग्रहण का संयोग बना था, तब चंद्र ग्रहण भारत में दृश्य नहीं था, सूर्यग्रहण का प्रभाव देखने को मिला था। श्री हरि ज्योतिष संस्थान मुरादाबाद के संचालक ज्योतिर्विद् पंडित सुरेंद्र कुमार शर्मा ने शनिवार को बताया कि 7 सितम्बर रविवार को पितृ पक्ष (श्राद्ध) का शुभारंभ होगा और समापन 21 सितंबर को होगा। इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत और समापन दोनों ग्रहण के साथ ही हो रहा है। 7 सितंबर को चंद्र ग्रहण लग रहा है तो 21 सितंबर को सूर्य ग्रहण लगेगा। चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा, इसलिए इसका सूतक काल भी मान्य होगा। हालांकि सूर्यग्रहण का प्रभाव भारत में नहीं रहेगा।
ज्योतिर्विद् पंडित सुरेंद्र कुमार शर्मा ने आगे बताया कि रविवार को पितृपक्ष की शुरूआत हाेगी, जबकि चंद्र ग्रहण 7 सितंबर को रात 9 बजकर 58 मिनट से शुरू होगा। ग्रहण का मोक्ष 3 घंटे 28 मिनट बाद रात 1 बजकर 26 मिनट पर होगा। जिसका सूतक काल 9 घंटे पहले अर्थात रविवार को दोपहर 12:58 पर प्रारंभ हो जाएगा, इसीलिए जो लोग भी पूर्णिमा पर पितरों का श्राद्ध करते हैं वह दोपहर 12:58 से पहले कर लें। यह ग्रहण शतभिषा नक्षत्र तथा कुंभ राशि पर होगा। भारत के अतिरिक्त इसे पश्चिमी प्रशांत महासागर, हिंद महासागर, पूर्वी अटलांटिक महासागर, अंटार्कटिका, एशिया, आस्ट्रेलिया, यूरोप आदि में देखा जा सकेगा।
पंडित सुरेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि पितृ पक्ष यानी श्राद्ध पक्ष आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर अमावस्या तक चलता है। इन 16 दिनों की अवधि में व्यक्ति अपने पितरों का तर्पण करते हैं। पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और वे खुश होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इस दौरान किए गए दान-पुण्य और तर्पण से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और सभी तरह के कष्ट दूर होते हैं। उन्होंने आगे बताया कि पितृ पक्ष की सभी तिथियों का अपना महत्व है, क्योंकि हर तिथि पर किसी न किसी के पितर की मृत्यु हुई होती है और वे उनके लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं। लेकिन, इस दौरान भरणी श्राद्ध, नवमी श्राद्ध और सर्व पितृ अमावस्या की तिथियां विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। भरणी श्राद्ध किसी परिजन की मृत्यु के एक साल बाद करना जरूरी होता है। अविवाहित लोगों का श्राद्ध पंचमी तिथि पर किया जाता है। नवमी श्राद्ध को मातृ श्राद्ध और मातृ नवमी के नाम से जाना जाता है। नवमी तिथि पर माता पितरों का श्राद्ध करने का विशेष महत्व है, जिसमें मां, दादी, नानी आदि के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है।
सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध
पंडित सुरेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि पितृ पक्ष की सबसे खास और आखिरी तिथि है सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या पर उन पितरों के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिनकी तिथि का पता नहीं है।
चंद्र ग्रहण के दौरान क्या न करें
ग्रहण के दौरान भोजन ग्रहण न करें, चंद्र ग्रहण के दौरान भगवान की मूर्ति को न छूएं, ग्रहण के समय खाना बनाने से परहेज करें, ग्रहण के समय सोने से भी परहेज करें, चंद्र ग्रहण के समय नकारात्मक जगहों पर न जाएं।
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