मिर्च की गुंटूर किस्म की खेती: जानें खेती का सही तरीका, लागत, उत्पादन, देश-विदेश में डिमांड और लाखों कमाई का पूरा राज़

मिर्च की खेती किसानों के लिए हमेशा से लाभदायक व्यवसाय रही है, लेकिन जब बात आती है मिर्च की गुंटूर किस्म की तो यह और भी ज्यादा फायदे का सौदा साबित होती है। यह किस्म अपने तीखेपन और गहरे लाल रंग के कारण न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी बहुत डिमांड में रहती […]
मिर्च की खेती किसानों के लिए हमेशा से लाभदायक व्यवसाय रही है, लेकिन जब बात आती है मिर्च की गुंटूर किस्म की तो यह और भी ज्यादा फायदे का सौदा साबित होती है। यह किस्म अपने तीखेपन और गहरे लाल रंग के कारण न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी बहुत डिमांड में रहती है। इस मिर्च की खासियत यह है कि यह लंबी, मोटे छिलके वाली और बेहद तीखी होती है, जिसका इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के व्यंजन और मसाले बनाने में किया जाता है। यही वजह है कि गुंटूर मिर्च भारत से निर्यात होने वाली प्रमुख लाल मिर्चों में से एक है। यह किस्म मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश के गुंटूर और प्रकाशम जिलों के साथ-साथ तेलंगाना के वारंगल और खम्मम जिलों में अधिकतर उगाई जाती है।
मिर्च की गुंटूर किस्म की खेती के लिए उपजाऊ और जीवांश युक्त दोमट मिट्टी सबसे आदर्श मानी जाती है। इसके पौधों को बीज के जरिए पहले नर्सरी में तैयार किया जाता है और फिर खेतों में रोपा जाता है। खेती के दौरान पोषक तत्वों से भरपूर जैविक खाद का प्रयोग करना चाहिए और खरपतवार नियंत्रण के लिए पॉवर वीडर या बीडर का उपयोग करना उचित होता है। पौधों की रोपाई के बाद यह फसल लगभग 60 से 75 दिनों में पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
लौकी की वीएनआर हारुना किस्म की खेती: कम दिनों में ज्यादा मुनाफे वाली फसल
उत्पादन क्षमता की बात करें तो गुंटूर मिर्च की फसल से प्रति एकड़ लगभग 40 से 60 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है। इस किस्म की तीखापन और गुणवत्ता के कारण इसकी कीमत बाजार में काफी ऊंची मिलती है। यही वजह है कि इसकी खेती किसानों को लाखों रुपये का मुनाफा दिला सकती है। इसके निर्यात की बढ़ती डिमांड किसानों के लिए एक स्थायी और दीर्घकालिक आय का जरिया बनाती है।
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