देहरादून में वोटबैंक की राजनीति ने उगाई मलिन बस्तियों की ''फसल'', सरकार के लिए बनी जी का जंजाल

Uttarakhand News: देहरादून शहर में रिस्पना, बिंदाल और सौंग जैसी नदियों के किनारे बसी मलिन बस्तियां अब गंभीर समस्या बन चुकी हैं। वोटबैंक की राजनीति के चलते नेताओं ने इन बस्तियों को बसाया, जिससे भारी बारिश में जान-माल का नुकसान होता है। अवैध निर्माण और नदी अतिक्रमण को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है।
वोटबैंक की राजनीति और चुनावी फायदे
सरकारी प्रयासों में बाधाएं
सरकार की तरफ से मलिन बस्तियों को हटाने या नियमित करने के प्रयास किए गए, लेकिन नेताओं ने रोड़ा अटकाया। वर्ष 2016 में कांग्रेस सरकार ने नदी-नालों के किनारे बस्तियों को नियमित करने की समिति बनाई थी, जबकि 2017 में भाजपा सरकार ने मलिन बस्तियों को बचाने का विधेयक पेश किया।
विकास योजनाओं और स्मार्ट सिटी के सपने
दून को उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी बने 25 साल हो चुके हैं। इस दौरान स्मार्ट सिटी और मेट्रो सिटी बनाने के जुमले दिये गए, लेकिन वोटबैंक की राजनीति ने इन बस्तियों के विकास और नियमितीकरण में बाधा डाली।
अवैध बस्तियों में सुविधाओं का वितरण
अवैध बस्तियों में नेताओं ने पेयजल, बिजली और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई। जबकि वैध कालोनियों में ये सुविधाएं अभी भी नहीं पहुंची हैं। यही बस्तियां नेताओं को चुनाव में संजीवनी देती हैं।
मलिन बस्तियों का सर्वे और स्थिति
129 मलिन बस्तियों का चिह्नित रिकॉर्ड है, लेकिन वर्तमान में यह संख्या लगभग 150 तक पहुँच चुकी है। इनमें 56 बस्तियां नदी, खाला व जलमग्न भूमि में हैं, 62 सरकारी या निजी भूमि पर, और 8 वन भूमि पर बसी हैं।
बस्तियों में जीवन और सामाजिक स्थिति
दूसरे सर्वे में पता चला कि 37% बस्तियां नदी-नालों के किनारे हैं। 55% मकान पक्के, 29% आधे पक्के, 16% कच्चे हैं। 24% बस्तियों में शौचालय नहीं है। मासिक आय 4311 रुपये है, जबकि खर्च 3907 रुपये। 6% लोग साक्षर नहीं हैं। 38% मजदूरी, 21% स्वरोजगार और 20% नौकरी करते हैं।
भविष्य में खतरे और समाधान की जरूरत
बरसात के दौरान नदी-नालों के उफान से ये बस्तियां जलमग्न हो जाती हैं। पुस्ता टूटने और अन्य आपदाओं से लोगों की जान जोखिम में रहती है। विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों का कहना है कि तत्काल मलिन बस्तियों का नियमितीकरण और सुरक्षित पुनर्वास जरूरी है।