8 अक्टूबर 2025 को कार्तिक मास प्रारंभ दिवस पर विशेष- भारतीय पंचांग का अत्यंत पवित्र मास कार्तिक मास
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अशोक “प्रवृद्ध”
भारतीय पंचांग के अनुसार संपूर्ण वर्ष में होने वाले बारह चंद्रमासों में से प्रत्येक की अपनी-अपनी अलग विशेषता है। प्रत्येक मास में अलग- अलग देवों की आराधना भी निर्धारित है। इन बारह मासों में आठवें स्थान पर आने वाली कार्तिक मास को अत्यंत पवित्र मास माना जाता है। इस मास की विशेषता का वर्णन स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण में किया गया है। स्कन्द पुराण के अनुसार देवताओं में भगवान विष्णु, तीर्थों में बद्रीनारायण तीर्थ की भांति ही सभी मासों में कार्तिक मास सर्वश्रेष्ठ व शुभ है। पदम पुराण के अनुसार कार्तिक मास धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष देने वाला है। कार्तिक मास का भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्व है।यह पापनाशक मास है। इस महीनेमें अनेक पर्व- त्यौहार मनाये जाते हैं।भारतीय पंचांग का आठवां महीनाकार्तिक मास 2025 में 8 अक्टूबर को शुरू होगा और 5 नवम्बर 2025 को समाप्त होगा।इस कार्तिक महीने में 10 अक्टूबर शुक्रवार को करवा चौथ, संकष्टी गणेश चतुर्थी,11 अक्टूबर शनिवार को रोहिणी व्रत,13 सोमवार को कालाष्टमी, अहोई अष्टमी,17 शुक्रवार को तुला संक्रांति, गोवत्स द्वादशी, रामा एकादशी,18 शनिवार को प्रदोष व्रत, धनतेरस,19 रविवार को मास शिवरात्रि, काली चौदस,20 सोमवार को नरक चतुर्दशी,21 मंगलवार को दिवाली, भौमवती अमावस्या, अमावस्या,22 बुधवार को अन्नकूट, चंद्र दर्शन, गोवर्धन पूजा,23 बृहस्पतिवार को भाई दूज,25 शनिवार को वरद चतुर्थी,26 रविवार को लाभ पंचमी,27 सोमवार को षष्टी, छठ पूजा, सोमवार व्रत,29 बुधवार को बुधाष्टमी व्रत,30 बृहस्पतिवार को दुर्गाष्टमी व्रत, गोपाष्टमी,31 अक्टूबर शुक्रवार को अक्षय नवमी,1 नवम्बर शनिवार को कंस वध, प्रबोधिनी एकादशी,2 नवम्बर रविवार को तुलसी विवाह,3 सोमवार को प्रदोष व्रत, विश्वेश्वर व्रत, सोम प्रदोष व्रत,4 नवम्बर मंगलवार को मणिकर्णिका स्नान तथा 5 नवम्बर बुधवार को पूर्णिमा, सत्य व्रत, कार्तिक पूर्णिमा, देव दिवाली, कार्तिक स्नान समाप्त, पूर्णिमा व्रत आदि व्रत -त्यौहार मनाये जाएंगे।
पौराणिक ग्रंथों में पापनाशक कार्तिक मास का बहुत ही दिव्य प्रभाव बतलाया गया है। यह मास भगवान विष्णु को सदा ही प्रिय तथा भोग और मोक्षरूपी फल प्रदान करने वाला है।पद्म पुराणउत्तर खंड 117/3 में कहा गया है-
हरिजागरणं प्रातः स्नानं तुलसिसेवनम्।
उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके।।
अर्थात- रात्रि में भगवान विष्णु के समीप जागरण, प्रातःकाल स्नान करना, तुलसी के सेवा में संलग्न रहना, उद्यापन करना और दीप दान देना- ये कार्तिक मास के पांच नियम हैं।
मान्यतानुसार इन पांच नियमों का पालन कार्तिक मास व्रत में करने वाला व्रती व्रत के पूर्ण फल का भागी होता है। वह फल भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है।भारतीय संस्कृति में पवित्र कार्तिक मास को दामोदर मास के नाम से भी जाना जाता है। इस पवित्र मास में विष्णु अवतार भगवान श्रीकृष्ण की भी पूजा अर्चना की जाती है। मान्यतानुसार विष्णु के श्रीकृष्ण अवतार के समय आश्विन शुक्ल पूर्णिमा के दूसरे दिन ही श्रीकृष्ण ने कुबेर पुत्रों- नलकुवर और मणिग्रीव का उद्धार किया था। उस दिन से कार्तिक मास को दामोदर मास कहा जाने लगा और दामोदर लीला के स्मरण में मास भर चलने वाले उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो भगवान श्रीकृष्ण द्वारा मक्खन चुराने की लीला है। उनकी प्रिय माता यशोदा द्वारा उन्हें ऊखल से बांधा जाता है। संस्कृत में दाम का अर्थ रस्सी और उदर का अर्थ पेट होता है। दामोदर श्रीकृष्ण के उनकी माता यशोदा द्वारा स्नेह की रस्सी से बंधे जाने का संकेतक है।
भारतीय परंपरा में कार्तिक मास को तपस्या करने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय के रूप में मान्यता प्राप्त है। पवित्र कार्तिक मास की महिमा का वर्णन अनेक पौराणिक ग्रंथों में किया गया है। स्कन्द पुराण के अनुसार सतयुग के समान कोई युग, वेदों के समान कोई शास्त्र और गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं होने की भांति ही कार्तिक के समान कोई मास नहीं है। कार्तिक मास के दौरान भक्तिमय सेवा करने वाले भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण की व्यक्तिगत कृपा बहुत सरलता से प्राप्त हो जाती है। कार्तिक मास में उपवास कर दामोदर स्वरुप श्रीकृष्ण की पूजा घी के दीपक से करने, भजन-कीर्तन करने, दामोदर लीला का महिमामंडन करने, मंत्रों का जाप और पवित्र नदियों में स्नान करने वाले स्वंय को सर्वोच्च भगवान श्रीकृष्ण के अत्यंत नजदीक अनुभव कर सकते हैं।पद्म पुराणउत्तर खण्ड 112/3 में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- सभी पौधों में से, पवित्र तुलसी मुझे सबसे प्रिय है, सभी महीनों में कार्तिक सबसे प्रिय है, सभी तीर्थों में, मेरी प्रिय द्वारिका सबसे प्रिय है, और सभी दिनों में एकादशी सबसे प्रिय है। यही कारण है कि इस महीने में विष्णु अथवा श्रीकृष्ण के मंदिरों में एकादशी आदि के अवसर पर पूजन- अर्चन, दीपदान करने वालों की भीड़ इकट्ठा होने लगती है। भविष्य पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर के अंदर और बाहर दीप-माला की व्यवस्था करने वाला व्यक्ति उन्हीं द्वीपों द्वारा प्रकाशित पथ पर परमधाम के लिए प्रस्थान करेगा। स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक मास में विशेषकर एकादशी के दिनों में सुंदर दीप माला की व्यवस्था करने वाले व्यक्ति जितने घी के दीयों की व्यवस्था करते थे, उतने हजारों वर्षों तक भगवद्धाम में रहेंगे।मान्यतानुसार चातुर्मास के बाद भगवान के जागने पर वे अपने तेज से चारों दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और स्थित होते हैं। एक चमकदार वाहन पर अपने शरीर की चमक से ब्रह्मांड को रोशन करते है।कार्तिक माह में दीप जलाना भगवान श्रीकृष्ण की सेवा है। भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर के अंदर और बाहर दीप-माला की व्यवस्था करने से व्यक्ति को भगवान के समान स्वरूप की प्राप्ति होती है।कार्तिक मास में दीपक अर्पित करने वाले व्यक्ति के समस्त पाप पलक झपकते ही नष्ट हो जाते हैं। वह इस मृत्युलोक में पुनः जन्म नहीं लेते।स्कंद पुराण के अनुसार इस मास में देवालय, नदी के किनारे, तुलसी के समक्ष एवं शयन कक्ष में दीपक जलाने वाले व्यक्ति को सर्व सुख प्राप्त होते हैं। भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी के निकट दीपक जलाने से अमिट फल प्राप्त होते हैं। इस मास में की गई भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की उपासना असीमित फलदायी होती है। मान्यतानुसार इस माह भगवान विष्णु चार माह की अपनी योगनिद्रा से जागते हैं। विष्णु को निद्रा से जगाने के लिए महिलाएं विष्णु की सखियां बनती हैं और दीपदान तथा मंगलदान करती हैं। इस माह में दीपदान करने से विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में छाया अंधकार दूर होता है। व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि होती है।
कार्तिक मास में तुलसी आराधना का विशेष महत्व है। पौराणिक कथा के अनुसार गुणवती नामक स्त्री ने कार्तिक मास में मंदिर के द्वार पर तुलसी की एक सुन्दर सी वाटिका लगाई। उस पुण्य के कारण वह अगले जन्म में सत्यभामा बनी। और सदैव कार्तिक मास का व्रत करने के कारण वह भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी बनी। इस मास में तुलसी विवाह की भी परंपरा है, जो कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है। इसमें तुलसी के पौधे को सजाया संवारा जाता है एवं भगवान शालग्राम का पूजन किया जाता है। तुलसी का विधिवत विवाह किया जाता है।
शरद ऋतु की अंतिम तिथि कार्तिक पूर्णिमा ब़डी पवित्र तिथि मानी जाती है। इस तिथि को ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य आदि का दिन माना गया है। इस दिन किए हुए स्त्रान, दान, हवन, यज्ञ व उपासना आदि का अनन्त फल प्राप्त होता है। इस अवसर पर कई स्थानों पर मेले लगते हैं। इस तिथि पर किसी को भी बिना स्नान और दान के नहीं रहना चाहिए। पवित्र स्थान एवं पवित्र नदियों में स्नान एवं दान अपनी शक्ति के अनुसार करना चाहिए।
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