परमपिता परमात्मा को सर्वशक्तिमान कहा गया है क्योंकि वे अखंड शक्ति, दया, क्षमा और न्याय के स्वामी हैं। उनकी कृपा से मानव जीवन धन्य हो सकता है, परंतु उनकी कृपा पाने के लिए मनुष्य को अपने भीतर पात्रता विकसित करनी होती है।
सर्वसम भाव, क्रोधहीनता, करूणा और अहिंसा जैसे गुण व्यक्ति को ईश्वर-भक्ति के योग्य बनाते हैं। भारतीय आध्यात्मिक चिंतन इस बात पर जोर देता है कि सदाचारयुक्त कर्म करते हुए ही सच्ची भक्ति प्राप्त की जा सकती है।
ईश्वर का आशीर्वाद उन पर अवश्य ही बरसता है जो सत्य, न्याय और भलाई के मार्ग पर चलते हैं। भारतीय चिंतन सदा से आशावादी रहा है — वह दुख में भी सुख की आशा का संचार करता है।
यह चिंतन जीवन के संकटों को सामान्य मानता है। यहां तक कि मृत्यु को भी अंत नहीं, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत माना गया है। यह विश्वास ही भारतीय दर्शन की सबसे बड़ी शक्ति है — कि हर अंत एक नए और श्रेष्ठ आरंभ का द्वार खोलता है।
इसलिए मनुष्य को ऐसे कर्मों से बचना चाहिए जो पाप की श्रेणी में आते हैं और सद्मार्ग पर चलकर जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।