Gardening Tips: स्टेम कटिंग तकनीक से बिना बीज के लगाएं सैकड़ों पौधे और पाएं लाल, नारंगी व सफेद रंग के खूबसूरत फूलों से खिला-खिला आंगन

अगर आप भी अपने घर के आंगन या गार्डन को सुंदर और रंग-बिरंगे फूलों से सजाना चाहते हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए खास है। कई बार हम पौधे तो लगा लेते हैं लेकिन उनमें फूल नहीं आते और हमें निराशा होती है। ऐसे में एक बेहद आसान तकनीक है जिससे आप बिना बीज के भी पौधे लगा सकते हैं और आपका गार्डन हमेशा खिला-खिला नजर आएगा। इस तकनीक को स्टेम कटिंग कहते हैं और इससे लगाए गए पौधे जल्दी बढ़ते हैं और शानदार फूलों से घर की शोभा बढ़ा देते हैं।
क्यों है खास स्टेम कटिंग तकनीक
पौधा लगाने के लिए कैसी मिट्टी चाहिए
पौधे की अच्छी ग्रोथ के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। इस मिट्टी में जल निकासी की क्षमता अच्छी होती है और पौधे ज्यादा स्वस्थ रहते हैं। मिट्टी का पीएच लगभग 6.0 से 6.5 होना चाहिए। इसके लिए आप घर पर ही मिट्टी तैयार कर सकते हैं। एक हिस्सा मिट्टी में गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट मिलाइए और एक हिस्सा नदी की रेत या कोकोपीट मिलाकर अच्छी तरह मिक्स कर दीजिए। मिट्टी को हल्का नम करने के बाद यह पौधारोपण के लिए बिल्कुल तैयार हो जाएगी।
कैसे करें पौधे की रोपाई
सबसे पहले पौधे के तने को 45 डिग्री के कोण पर काटकर करीब 8 से 10 इंच लंबा हिस्सा निकाल लीजिए। इस कटे हुए तने को 1 घंटे तक पानी में रख दीजिए। अगर तना काटने के बाद ज्यादा समय निकल गया है तो इसे 8 से 9 घंटे तक पानी में भिगोकर रखें। इसके बाद तैयार गमले में मिट्टी डालकर एक छोटा गड्ढा बनाएं और उसमें तने को लगभग 3 इंच गहराई तक दबा दीजिए। हल्का सा पानी डालें और ध्यान रखें कि पानी ज्यादा न हो क्योंकि इससे तना गल सकता है। रोपाई के बाद पौधे को 4 से 5 घंटे तक धूप दिखाना जरूरी है ताकि यह जल्दी जड़ पकड़ सके और अच्छी तरह बढ़ सके।
स्टेम कटिंग से लगाए गए पौधे न सिर्फ आपके घर की सुंदरता बढ़ाते हैं बल्कि इन्हें देखकर मन भी खुश हो जाता है। जब आपके गार्डन में अलग-अलग रंगों के फूल खिले रहेंगे तो हर आने वाला मेहमान आपकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाएगा। यह तरीका इतना आसान है कि आप चाहे तो छोटे बच्चों को भी पौधारोपण में शामिल कर सकते हैं और उन्हें प्रकृति से जोड़ सकते हैं।
Disclaimer: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी सामान्य बागवानी अनुभव और कृषि सलाह पर आधारित है। पौधे लगाने से पहले स्थानीय जलवायु और परिस्थितियों के अनुसार विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।