कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली उन्नत सरसों की किस्म, 40% तेल और 32 क्विंटल उपज से किसान बन रहे मालामाल


पूसा मस्टर्ड-38 की खासियत जो बनाती है इसे किसानों की पहली पसंद

इस किस्म के पौधे अन्य किस्मों की तुलना में अधिक झाड़ वाले होते हैं और शाखाएँ लंबी होती हैं। इसका मतलब है कि हर पौधा ज्यादा फलियाँ देता है। प्रति पौधा करीब 400 से 450 फलियाँ बनती हैं जो इसे ज्यादा उत्पादन देने वाली किस्मों में शामिल करती हैं।
पूसा मस्टर्ड-38 की खेती के लिए उपयुक्त वातावरण और मिट्टी
इस सरसों की किस्म की खेती के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यदि तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहे तो फसल अच्छी तरह से विकसित होती है। खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी जिसमें पानी का निकास अच्छा हो, सर्वोत्तम रहती है।
एक हेक्टेयर खेत में ड्रिल विधि से बुवाई के लिए लगभग 4 से 5 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। बुवाई से पहले मिट्टी में गोबर की खाद औ र उचित मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और सल्फर डालना जरूरी है ताकि पौधे मजबूत और स्वास्थ्यवर्धक बनें।
बुवाई के बाद यह फसल लगभग 130 से 135 दिनों में पूरी तरह पककर तैयार हो जाती है। यानी सर्दियों के मौसम में यह फसल कम समय में किसानों को बेहतरीन मुनाफा दिलाने में सक्षम होती है।
उपज और बाजार मूल्य जो किसानों की जेब भर दे
पूसा मस्टर्ड-38 किस्म अपने उच्च उत्पादन और तेल की गुणवत्ता के कारण पूरे देश में लोकप्रिय है। इस किस्म में 38 से 40 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती है जो इसे बाजार में प्रीमियम वैरायटी बनाती है।
अगर आप एक हेक्टेयर में इसकी खेती करते हैं तो आपको कम से कम 30 से 32 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त हो सकता है। इतना ही नहीं इसका बाजार भाव 6000 से 7200 रुपये प्रति क्विंटल तक रहता है, जिससे किसानों को लाखों रुपये की आमदनी आसानी से हो जाती है।
दोस्तों, सरसों की पूसा मस्टर्ड-38 किस्म वाकई में किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। इसकी खेती से न केवल अधिक उपज मिलती है बल्कि तेल की गुणवत्ता भी बेहतरीन होती है। यदि आप सरसों की खेती में नई किस्म अपनाने की सोच रहे हैं तो पूसा मस्टर्ड-38 एक समझदारी भरा विकल्प है। यह किस्म हर दृष्टि से मुनाफे की गारंटी देती है।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों के अनुभवों पर आधारित है। खेती शुरू करने से पहले अपने क्षेत्र के कृषि अधिकारी या विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें ताकि बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकें।