धान की खेती में ब्लास्ट और झुलसा रोग से कैसे बचाएं फसल, किसानों के लिए जरूरी जानकारी

आज हम बात करेंगे धान की फसल के बारे में जो हमारे देश की रीढ़ मानी जाती है। खेतों में लहलहाती हरी-भरी धान की फसल किसानों के चेहरे पर मुस्कान ला देती है क्योंकि यह उनकी मेहनत का फल और आमदनी का जरिया होती है। लेकिन हर साल धान की फसल के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी होती है और वह है रोगों का प्रकोप। अगर सही समय पर ध्यान न दिया जाए तो ये रोग पूरे खेत को बर्बाद कर सकते हैं।
धान की खेती में लगने वाला भूरा धब्बा रोग गोल या अंडाकार गहरे भूरे धब्बों के रूप में दिखाई देता है जिसके चारों ओर पीला घेरा होता है। खैरा रोग जिंक की कमी से होता है जिसमें पत्तियों पर पीले या सफेद धब्बे उभर आते हैं। पर्ण झुलसा में पत्तियों की शीथ पर भूरे धब्बों के चारों ओर हल्की बैंगनी धारियां बन जाती हैं जो संक्रमण का संकेत देती हैं। वहीं जीवाणु झुलसा में पत्तियों के किनारे पीली और चिपचिपी धारियां बनने लगती हैं जो बाद में सूखकर सफेद हो जाती हैं।
अब बात करें समाधान की तो प्रो. सिंह बताते हैं कि धान की खेती में ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक फफूंदनाशक का उपयोग शीथ ब्लाइट संक्रमण को कम करता है और मिट्टी को स्वास्थ्यप्रद बनाता है। इसके अलावा ट्राइसाइक्लोजोल और हेक्साकोनाजोल का छिड़काव रोग नियंत्रण में बेहद प्रभावी है। खेत से अतिरिक्त पानी निकाल देना भी जरूरी है क्योंकि यह जीवाणु झुलसा के संक्रमण को कम करता है।
धान की खेती करते समय किसानों को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। पौधों के बीच उचित दूरी रखना बेहद जरूरी है ताकि खेत में हवा का संचार बना रहे और नमी ज्यादा देर तक न टिके। इससे फफूंद और बैक्टीरिया का असर कम होता है। खेत की नियमित निगरानी करनी चाहिए और रोग का पहला लक्षण दिखते ही तुरंत उपचार करना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बाजार से खुद दवा खरीदकर छिड़काव करने के बजाय नजदीकी कृषि विभाग या कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेना हमेशा फायदेमंद होता है।
धान की फसल अगर सही देखभाल और समय पर उपचार के साथ की जाए तो न सिर्फ रोगों से बचाव संभव है बल्कि किसान भरपूर मुनाफा भी कमा सकते हैं। खेतों की यह हरियाली किसानों की मेहनत और सही जानकारी का नतीजा होती है।
Disclaimer: यह लेख केवल सामान्य जानकारी और जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी रोग नियंत्रण या दवा के प्रयोग से पहले कृषि विशेषज्ञ या नजदीकी कृषि विभाग की सलाह जरूर लें