- नरेंद्र देवांगन
बहुत समय पहले की बात है, एक राजा था। एक दिन उसने मंत्री से कहा कि राज्य सभा की बैठक केलिए एक बड़ा भवन बनवाया जाए। राजा के हुक्म होते ही कुछ ही दिनों में भवन...
वो एक साधारण-सा गांव था, जहां की गलियों में गोबर की गंध और उम्मीदों की महक साथ-साथ बहती थी। उसी गांव में पला-बढ़ा अर्जुन, बचपन से ही कुछ अलग करने का सपना देखता था। जब लोग गोबर को गंदगी समझते थे, अर्जुन उसकी खुशबू में संभावनाओं की तलाश करता था। “गोबर… हाँ, यही तो वो […]
माहौल ग़मगीन था। परिवार में मौत होने पर सबकी आँखों में आँसू थे पर एक कोने में बैठे कुछ बुज़ुर्ग ख़ामोश थे। रोते-बिलखते लोगों के बीच यही वर्ग था जो न रोकर, संतुलन बिठाने की कोशिश में लगा दिखा। मैंने जिज्ञासा-वश एक बुज़ुर्ग महिला से यूँ ही पूछ लिया- मरने वाला आपका कौन था। जवाब मिला- मेरा छोटा भाई था। उसके भाई से जुड़े परिवार के सभी लोग जहाँ बिलख रहे थे, वहीं वह महिला ख़ामोश थी। उम्र की सफ़ेदी बालों के साथ-साथ चेहरे पर भी चमक रही थी। किसी संत जैसी विरक्ति के साथ वह ग़मगीन महिला सबको दिलासा दे रही थी। मन में विचार कौंधा, क्या इसे अपने भाई के मरने का दुःख नहीं है? फिर बाहर से आए एक सज्जन ने यूँ ही पूछ लिया- कितनी उम्र थी। जवाब दिया गया- पचहत्तर के हुए थे पिछले महीने। ये सुनकर उन सज्जन के चेहरे पर आश्वस्ति जैसे भाव आ गए। मानो जाने वाला चला गया तो ठीक ही हुआ। चंद रस्मों के बाद जाने वाला अपने अंतिम पड़ाव की ओर पहुँचा दिया गया। लोग चले गए पर कोने में वे बुज़ुर्ग लोग बैठे रहे। अब उनकी भूमिका बदल गई थी। ख़ाना न खाने की ज़िद पर अड़े परिजन को वे समझा रहे थे। सुबुक-सुबुक रोती पत्नी, बेटी, पोता-पोती और परिवार से जुड़े तमाम लोगों पर उनके हाथ, भाव-भरे अंदाज़ में कभी उनके कंधों पर पड़ते, कभी सिर पर। अब तक अपने भावों को दबाए न जाने कितनों की रुलाई अब फूट पड़ी। बुज़ुर्ग उनको सांत्वना देते और हौसला बढ़ाते। कुछ महीनों बाद मैं फिर उस घर में गया। पता चला, बुआ चली गईं थीं हमेशा के लिए, शायद भाई का ग़म झेल नहीं पाईं थीं। मैं सोच में डूब गया, उस दिन छोटे भाई की मौत पर न रोने वाली बुआ, सबको दिलासा देने वाली बुआ, क्या अंदर से इतना टूट गई थीं। हम शायद इन बुज़ुर्गों को समझ नहीं पाते। ये किसी शॉक अब्ज़ॉर्बर की तरह सब- कुछ अपने अंदर समेट लेते हैं, और अंदर ही अंदर घुटते चले जाते हैं। ये सबको समझते हैं पर पता नहीं क्य़ूँ हम ही इन्हें समझने में नाकाम हो जाते हैं।
बच्चों की परवरिश एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसमें माता-पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। प्रारंभिक वर्षों में बच्चों का मस्तिष्क तीव्र गति से विकसित होता है, जिससे उनके सोचने, सीखने और व्यवहार करने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए, एक सकारात्मक और सहायक वातावरण प्रदान करना आवश्यक है। प्रारंभिक वर्षों में बच्चों की […]
गहराई से देखें तो राम और रावण दोनों ही अलग अलग प्रतीक हैं। हम चाहे उन्हें मानव और दानव के रूप में देखें या आध्यात्मिक और भौतिकतावादी संस्कृतियों के रूप में। चाहे उन्हें राक्षस और रक्षक के रूप में देखा जाये या दमनकारी और उद्धार करने वाले तत्वों के रूप में, हर रूप में वे […]
एक पेड़ में एक गिलहरी का परिवार रहता था। उनकी एक बच्ची थी, जिसका नाम नीनी था। कुछ ही दूरी पर एक बिल में चूहा परिवार रहता था। उनके दो बच्चे थे, चिर और कुट। तीनों बच्चे शाम को साथ-साथ खेलते थे। एक दिन शाम को तेज बारिश हुई थी जिससे मौसम ठंडा हो गया […]
पश्चाताप भी कई तरह के होते हैं। स्वामी विवेकानंद जी ने एक बार ऐसा पश्चाताप किया। जब पश्चाताप भी कई तरह के होते हैं। स्वामी विवेकानंद जी ने एक बार ऐसा पश्चाताप किया। जब स्वामी विवेकानंद जी ने संन्यास लिया, तो वे भिन्न भिन्न स्थानों पर पैदल यात्रा किया करते थे। ने संन्यास लिया, तो […]
बच्चों में जिम्मेदारी और जीवन के प्रति संजीदगी का बोध करवाना प्रत्येक माता-पिता का कर्तव्य है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि बच्चे जीवन की हर परिस्थिति का सामना कर सकें। इसके लिए जरूरी है कि बच्चों में छोटी उम्र से ही जिम्मेदारी का बोध डाला जाए। बचपन से ही जिम्मेदारी का बोध: जब बच्चा […]
चाहे हमें सर्दी पसंद हो या न हो, ठंड का मौसम आ रहा है और फरवरी तक रहेगा। जिस तरह हम गर्मियों के महीनों में रहने की कोशिश करते हैं, उसी तरह हमें सर्दियों के महीनों में भी गर्म रहने के लिए वही सावधानियाँ बरतनी चाहिए। अपने प्रियजनों, खासतौर पर अपने बच्चों को इस कठोर […]
रात दो बज रहे होंगे तब ही नींद खुल गई, लगा मानो कोई बाहर पुकार रहा है। बाहर निकला तो बेशरम की तरह हंसते हुए मकान मालिक खड़ा था। – क्या बात है? – मकान खाली करो। – ये कोई समय है- मैंने चिढ़ते हुए कहा। – ये जमीन किसकी? – आपकी – ये मकान […]
ठीक छह वर्ष के बाद धर्मेश आज फिर उसी रेलवे प्लेटफार्म पर अटैची हाथ में लिये ट्रेन से उतरा था, जहां से वह अंतिम परीक्षा देकर गांव को वापस गया था। बीते छह वर्षों में उसने कई जगह छोटे-मोटे जाब किए, लेकिन कहीं भी वह टिक न सका। यह महानगर उसका परिचित है, कई परिवारों […]
रिश्ते से वह भाभी लगती थी, सगी भाभी तो नहीं, मगर वे मेरे छोटे मामा के लड़के अविनाश की पत्नी विमला थी। ‘थी शब्द का इस्तेमाल इसलिए कर रहा हूं कि अभी अभी हम उन्हें श्मशान में खाक करके आये हैं। कैंसर से ग्रसित विमला भाभी दो साल तक जीवन मृत्यु के बीच झूलती रहीं। […]