बिहार का मिनी बैटल: सम्राट, विजय और प्रसाद की साख दांव पर, तीन सीटों पर गर्म हुआ सियासी अखाड़ा
Bihar Election 2025: बिहार की तीन विधानसभा सीटें तारापुर, लखीसराय और कटिहार इन दिनों प्रदेश की सियासत के केंद्र में हैं। यहां मुकाबला सिर्फ उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि सत्ता पक्ष की साख और राजनीतिक प्रतिष्ठा का है। तीनों सीटों पर भाजपा के बड़े नेता मैदान में हैं, जिससे चुनावी जंग दिलचस्प बन गई है।
सम्राट चौधरी की पहली अग्निपरीक्षा
यहां कुशवाहा (कोइरी) समुदाय की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है, जबकि वैश्य, यादव और अतिपिछड़े मतदाता भी प्रभावशाली हैं। सम्राट चौधरी को उनके कुशवाहा वोट बैंक का मजबूत समर्थन मिल रहा है।
वीआईपी के नेता सकलदेव बिंद ने निर्दलीय नामांकन वापस लेकर सम्राट के समर्थन का ऐलान किया, जिससे लगभग 25 हजार बिंद मतदाता एनडीए की ओर झुकते दिख रहे हैं। पिछली बार यह सीट जदयू के पास थी, लेकिन इस बार भाजपा के खाते में आने से प्रतिष्ठा की जंग और तीखी हो गई है।
विजय सिन्हा बनाम अमरेश अनीश
लखीसराय विधानसभा सीट पर एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे का मुकाबला है। उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा लगातार चौथी जीत के लिए मैदान में हैं, जबकि कांग्रेस के अमरेश कुमार अनीश ने फिर से ताल ठोकी है। 2020 में विजय सिन्हा ने महज 10,483 वोटों से जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं।
पूर्व विधायक फुलैना सिंह और निर्दलीय सुजीत कुमार, जो पिछली बार करीब 22 हजार वोट ले गए थे, अब कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में खुलकर प्रचार कर रहे हैं। जहां शहर और व्यापारी वर्ग में विजय सिन्हा की पकड़ मजबूत है, वहीं बड़हिया और टाल क्षेत्र में अनीश का प्रभाव बढ़ा है।
वैश्य वोटों में दरार
कटिहार विधानसभा इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद लगातार पांचवीं बार मैदान में हैं, लेकिन इस बार चुनौती नई है। वीआईपी प्रत्याशी सौरभ अग्रवाल जो भाजपा एमएलसी अशोक अग्रवाल के बेटे हैं, की एंट्री ने भाजपा के परंपरागत वैश्य वोट बैंक में हलचल मचा दी है।
सौरभ को राजद-कांग्रेस गठबंधन का समर्थन प्राप्त है, और वे शहर व व्यापारी वर्ग में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। इधर, जनसुराज के मोहम्मद गाजी शरीफ मुस्लिम वोटों पर असर डाल रहे हैं, जबकि राजद के रामप्रकाश महतो यादव समुदाय के वोटों में सेंध लगा सकते हैं।
कटिहार के लगभग 25% मुस्लिम और बड़ी संख्या में वैश्य मतदाता इस बार का पूरा चुनावी गणित तय करेंगे। भाजपा जहां शहरी वोटरों पर भरोसा कर रही है, वहीं ग्रामीण इलाकों में सौरभ की पकड़ मजबूत दिख रही है।
तीन सीटें, तीन कहानियां: लेकिन दांव सिर्फ सीटों का नहीं, साख का भी
इन तीनों सीटों पर मुकाबला केवल उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि भाजपा नेतृत्व की साख का भी है। जहां सम्राट चौधरी की छवि कुशवाहा समाज में निर्णायक है, वहीं विजय सिन्हा और तारकिशोर प्रसाद के लिए यह चुनाव व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है। नतीजे तय करेंगे कि बिहार में भाजपा की अगली रणनीति किस दिशा में जाएगी, जातीय समीकरण के सहारे या विकास के एजेंडे पर।
