देहरादून में छठ पर्व का भव्य आयोजन, कुंभ जैसी सुविधाओं के बीच नदियों पर रोशनी से जगमगाएंगे घाट

Chhath Puja 2025: देहरादून में इस बार छठ पूजा अपनी अनोखी भव्यता के साथ मनाई जाएगी। प्रशासन ने पहली बार ऐसे व्यापक प्रबंध किए हैं कि श्रद्धालुओं को किसी तरह की असुविधा का सामना न करना पड़े। शहर के तीन प्रमुख घाटों प्रेमनगर, टपकेश्वर और चंद्रबनी को इस पर्व के लिए विशेष रूप से तैयार किया जा रहा है। यह आयोजन पूर्वांचलवासियों की धार्मिक आस्था के सम्मान में कुंभ की तर्ज पर आयोजित होगा।
कुंभ जैसी व्यवस्था, चढ़ेगा छठ उत्सव का रंग

तीन घाटों पर बनेगा छठ का केंद्र
शहर में तेजी से बढ़ रही पूर्वांचलवासी आबादी को देखते हुए प्रशासन ने तीन प्रमुख स्थानों को चयनित किया है। प्रेमनगर में टौंस नदी के नीचे, टपकेश्वर मंदिर परिसर में तमसा नदी के किनारे, और चंद्रबनी में सेवलाकलां मंदिर परिसर को अस्थायी घाट के रूप में विकसित किया जाएगा। यहां श्रद्धालुओं के लिए प्रवेश मार्ग साफ रखे जाएंगे, किनारे समतल किए जाएंगे और जल स्तर सुरक्षित रखने के निर्देश दिए गए हैं।
सफाई, सुरक्षा और श्रद्धा का संतुलन
छठ पर्व के दौरान घाटों की स्वच्छता पर विशेष ध्यान रखा जाएगा ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की दिक्कत न हो। पूजा क्षेत्र में नियमित सफाई कराई जाएगी और धूल-मिट्टी से परेशानी बचाने के लिए पानी का छिड़काव किया जाएगा। सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस और यातायात पुलिस को मुस्तैद रहने के निर्देश जारी किए गए हैं। भीड़ बढ़ने की स्थिति में जिला प्रशासन अतिरिक्त फोर्स तैनात करेगा।
श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मेडिकल कैम्प
यदि आवश्यकता हुई तो पूजा स्थलों पर मेडिकल टीम और प्राथमिक उपचार केंद्र भी स्थापित किए जाएंगे। रोशनी की व्यवस्था ऐसी होगी कि रात में भी श्रद्धालु सुरक्षित और सहजता से पूजा कर सकें। बिजली विभाग से कहा गया है कि इन स्थानों पर निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।
22 छठ घाटों पर गूंजेगा आस्था का स्वर
दून शहर में कुल 22 छठ घाटों की पहचान की गई है, जिनमें टपकेश्वर, चंद्रबनी, रायपुर, केशरवाला, हरवंशवाला, मालदेवता और प्रेमनगर प्रमुख हैं। इन सभी स्थलों पर 25 अक्टूबर से छठ महापर्व की शुरुआत होगी और भक्त सूर्योपासना में चार दिनों तक लीन रहेंगे।
चार दिन की अनूठी भक्ति यात्रा
छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला पवित्र पर्व है जो संतान सुख और परिवार की समृद्धि के लिए समर्पित है। बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसका विशेष महत्व है। देहरादून में अब यह पर्व पूर्वांचल के लोगों के साथ-साथ स्थानीय निवासियों के लिए भी सामूहिक श्रद्धा और एकता का प्रतीक बन गया है। सूर्य देव और छठी मइया के प्रति अटूट आस्था इस आयोजन को अद्भुत आध्यात्मिक ऊंचाई देती है।