मिल्की वे का खुला रहस्य: एरीज वैज्ञानिकों ने खोजीं धूल की परतों के नीचे छिपी तारों की जन्मभूमि
Uttarakhand News: वैज्ञानिकों ने मिल्की वे आकाशगंगा में फैली धूल और गैस का ऐसा विस्तृत मानचित्र तैयार किया है जिसने तारों के जन्म की नई कहानी बयां की है। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वैज्ञानिकों ने छह हजार से अधिक तारों के समूहों के डाटा का विश्लेषण कर यह मानचित्र तैयार किया है। इस खोज ने साबित कर दिया कि हमारी आकाशगंगा में छाई यह धूल न केवल उसे ढकती है, बल्कि उसी के पीछे सितारों के जन्म का रहस्य छिपा है।
पृथ्वी की धूल और ब्रह्मांड की धूल में फर्क
धूल की पतली परतें
डा. योगेश चंद्र जोशी के नेतृत्व में हुए अध्ययन से पता चला कि यही धूल तारों की रोशनी को मंद करती है, जिससे वे लाल रंग के दिखाई देते हैं। धूल का वितरण समान नहीं है, बल्कि यह एक पतली, लहरदार परत बनाती है जो आकाशगंगा के केंद्रीय तल से थोड़ा नीचे स्थित है। इस परत को वैज्ञानिक "रेडनिंग प्लेन" कहते हैं। दिलचस्प यह है कि यह परत सूर्य के लगभग 50 प्रकाश वर्ष ऊपर पाई गई है, अर्थात हम एक चमत्कारी धूल-मंडल के भीतर जी रहे हैं।
सितारों का जन्मस्थान खोज लिया गया
एरीज टीम ने दुनियाभर की स्पेस एजेंसियों से छह हजार से अधिक क्लस्टर का डेटा इकट्ठा किया। जब इन डेटा को संयोजित किया गया, तो धूल और गैस के वितरण की वास्तविक तस्वीर सामने आई। इन क्लस्टरों में ज्यादातर गैलेक्टिक तल के पास स्थित हैं - वहीं जहां तारों का जन्म होता है। इससे साबित हुआ कि धूल और गैस के पीछे वो गर्भगृह छिपे हैं जिनसे नए तारे चमकते हैं।
धूल की उत्पत्ति की कहानी
अंतरिक्ष में धूल की उत्पत्ति के कई स्रोत हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ये मुख्य रूप से सुपरनोवा विस्फोटों से उत्पन्न होती हैं - वही विस्फोट जो किसी तारे के अंत का संकेत देते हैं। इसके अलावा धूमकेतुओं और क्षुद्रग्रहों के टकराने से भी धूल बनती है। यही धूल और गैस विशाल बादलों का निर्माण करते हैं जिन्हें निहारिका कहा जाता है, और इन्हीं निहारिकाओं में नए तारे और ग्रह जन्म लेते हैं।
भारतीय विज्ञान की नई ऊंचाई
एरीज के निदेशक डॉ. मनीष नाजा ने इस खोज को भारतीय खगोल विज्ञान के लिए एक मील का पत्थर बताया। उन्होंने कहा कि धूल भरे मिल्की वे के मानचित्र से अब तारा निर्माण स्थलों की जांच आसान होगी। हाल ही में एरीज के वैज्ञानिकों ने जुड़वा ब्लैक होल का पता लगाकर दुनिया को चौंकाया था, और अब मिल्की वे की धूल का मानचित्र बनाना भारत के खगोल विज्ञान को नई दिशा देता है।
